फिर निकला ढाई-ढाई साल वाला जिन्न (🏹शब्द बाण-9)

साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम

   -✒️ शैलेन्द्र ठाकुर

फूल छाप कांग्रेसी और हाथ छाप भाजपाइयों की शिनाख्त

मतगणना की तारीख को लेकर लंबे इंतजार के बीच अब दोनों ही पार्टियों में फूल छाप कांग्रेसियों और पंजा छाप भाजपाइयों की शिनाख्ती चल रही है। कुल मिलाकर कौन, किसकी तरफ से चुनावी महाभारत में शामिल हुआ, इसका ठीक-ठीक अंदाजा लगा पाना मुश्किल है। संगठन की ओर से बागियों पर सख्त कदम उठाए जाने के संकेत हैं।
दोनों पार्टियों के ऑब्जर्वरों की नज़र पर भरोसा करें तो बड़े-बड़े दिग्गज भी कार्रवाई के राडार पर आ सकते हैं। साथ ही अपनी ही पार्टी के उम्मीदवार की नज़रों का सामना करना मुश्किल हो गया है।
यह स्थिति ठीक वैसे ही है, जैसे महाभारत की समाप्ति के बाद भीमसेन को व्यथित पिता के आलिंगन से और भगवान श्रीकृष्ण को माता गांधारी के कोप से रूबरू होना पड़ा था। इधर, आम आदमी पार्टी ने इस बार कमल और पंजे के अरमानों पर झाड़ू फेरने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी है। कहीं ऐसा न हो कि दो दिग्गजों की लड़ाई में आप क्लीन स्वीप कर जाए।

फिर निकल आया ढाई-ढाई साल वाला जिन्न
छत्तीसगढ़ में मतदान के दोनों चरण सम्पन्न होने के बाद नतीजा अभी घोषित नहीं हुआ और कद्दू कटने से पहले ही इसे बांटने की कवायद शुरु हो गई है।
कांग्रेस में फिर से ढाई-ढाई साल के सीएम वाला जिन्न फिर चिराग़ से बहर निकल आया है। पिछली बार छाछ से जले बाबा इस बार दही को भी फूंक-फूंक कर पीने के मूड में हैं। पिछली दफा कई बार दूल्हे के फूफा की तरह रूठकर देख चुके बाबा खुद बेबस हैं।
अगर कांग्रेस की सरकार बनी तो इस बार बाबा पहले सीएम बनने पर अड़ सकते हैं। कह भी चुके हैं कि इस बार सीएम नहीं बने तो अगली बार चुनाव नहीं लड़ेंगे।
लेकिन बड़ी दिक्कत यह है कि इस बार कका और बाबा के अलावा पीसीसी अध्यक्ष बैज भी सीएम पद के दावेदार हो सकते हैं। बशर्ते कि तीनों अपनी-अपनी सीट से विधायक चुने जाएं और पार्टी 45 प्लस का जादुई आंकड़ा पा ले।
दूसरी तरफ, जीत को लेकर आशान्वित भाजपाई खेमे में मुख्यमंत्री पद के लिए पिछले दरवाजे से डॉ रमन की फिर से एंट्री के कयास भी लगाए जा रहे हैं। टिकट वितरण में जिस तरह से डॉ साहब की चली है, उससे विरोधी खेमा पस्त नजर आ रहा है। हालांकि, पूरे चुनाव को पीएम मोदी के चेहरे और कमल छाप पर लड़ा गया था।

पेंडुलम बन गए गुरुजी
प्रमोशन के बाद पोस्टिंग और पोस्टिंग के बाद से संशोधन में हुए खेला के बाद शिक्षकों की स्थिति पेंडुलम जैसी हो गई है। मूल पदस्थापना वाली जगह पर लौटने के सरकारी फरमान के बाद से इन शिक्षकों को वेतन के लाले पड़ गए हैं। वे न तो नई जगह पढ़ा पा रहे हैं, न ही पुरानी जगह। दीपावली जैसा त्यौहार भी इसी उधेड़बुन में बीत गया।

कर्ज नहीं ले पाने का अफसोस

चुनावी वादों की फेहरिश्त में कर्ज माफी भी एक बड़ा मुद्दा बन कर रह गया। जिस तरह से लोक लुभावन घोषणाओं की होड़ अंतिम चरण में लगी, उससे तेंदूपत्ता संग्राहकों और किसानों की बल्ले-बल्ले हो गई है। कुछ किसान तो कर्ज नहीं लेने की अपनी भूल पर अफसोस करने लगे हैं। हालांकि इन तमाम घोषणाओं के बीच जनहित के स्थानीय मुद्दे गायब रहे। लोग रेल्वे ओवरब्रिज, टोल टैक्स, सड़क, पुल-पुलिए, डीएमएफ जैसे मुद्दे तलाशते रह गए।

एक म्यान में दो तलवार

दंतेवाड़ा जिले में शिक्षा विभाग इन दिनों अजीब दुविधा में है। आचार संहिता लगने से पहले तबादले पर आए नए जिला शिक्षा अधिकारी ने जॉइनिंग तो ले ली, लेकिन विधिवत प्रभार अब तक नहीं मिला। इधर पुराने डीईओ अब तक रिलीव नहीं हुए। एक ही चेम्बर में दोनों अफसर बैठ रहे हैं। एक म्यान में दो तलवार जैसी स्थिति बनी हुई है। विभागीय कर्मचारी भी पशोपेश में हैं कि चढ़ते सूरज को सलाम करें या विदा होने वाले को।

शीत निद्रा में गया विकास

चुनाव के सीजन में दंतेवाड़ा जिले का विकास शीत निद्रा में चला गया है। न कोई नया काम मंजूर हो रहा है, न ही पुराने कार्यों के प्रति कोई खास उत्साह दिख रहा है। ज्यादातर अफसर और कर्ता-धर्ता भी वैराग्य भाव में चले गए हैं। 3 दिसम्बर को मतगणना के बाद ही शीत निद्रा भंग होगी ऐसा लगता है। इधर, आचार संहिता की अवधि भी कुछ ज्यादा ही लंबी हो गई है, जिसका इस्तेमाल ढाल की तरह किया जाने लगा है। इस अघोषित शीतकालीन अवकाश की समाप्ति नई सरकार के गठन पर ही होगी।

वर्ल्ड कप पर लगा ग्रहण
वर्ल्ड कप का उत्साह इस बार छत्तीसगढ़ में फीका रहा। चुनाव, दीवाली और छठ पूजन के बीच क्रिकेट वर्ल्ड के महत्वपूर्ण मैच फंसते चले गए। पहले चरण में मतदान वाले इलाकों में जरूर क्रिकेट प्रेमियों को कुछ मैचों के रोमांच का लुत्फ उठाने का मौका मिला। बाद में फाइनल मैच देखकर टीम इंडिया को चैंपियन बनते देखने की उम्मीदें थीं, वह भी कंगारू टीम के शानदार प्रदर्शन से धराशायी हो गई। कईयों ने हजारों-लाखों के दांव टीम इंडिया पर लगा रखे थे, जो दिल के अरमानों के साथ आंसुओं की तरह बह गए।

छठ पूजन में रमे लोग
चुनावी चकल्लस से फुर्सत पाने के बाद ज्यादातर नेता, कार्यकर्ता व अफसर सैर-सपाटे और छठ पूजन में रम गए। पर्व मनाने कुछ अपने पैतृक प्रान्त रवाना हो गए, तो कुछ स्थानीय स्तर पर आयोजन में शामिल हुए। अंतिम सुबह भगवान सूर्यदेव को अर्घ्य देकर पर्व का समापन हुआ। इसके साथ ही नई सुबह की नई उम्मीदें लेकर लोग घाट से लौटे।

खुद की काबिलियत को पहचानना ही सफलता की पहली सीढ़ी – मीणा

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