डबल सरपंच वाला विभाग (शब्द बाण-35)

डबल सरपंच वाला विभाग (शब्द बाण-35)

 

साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम शब्द बाण (भाग-35)

✍️शैलेन्द्र ठाकुर @ दंतेवाड़ा

दक्षिण बस्तर जिले में स्वास्थ्य विभाग उस पंचायत की तरह है, जिसमें दो सरपंच हैं। एक सरकारी सरपंच और दूसरा सर्वमान्य सरपंच। सरकारी सरपंच यानि सरकार द्वारा विधिवत चुना गया सरपंच, जो सरकारी प्रक्रियाएं पूरी करने के लिए होता है। दूसरी तरफ सर्वमान्य यानि गांव के लोगों के बीच लोकप्रिय और ताकतवर मुखिया, जो पद से तो नहीं, लेकिन आचरण से सरपंच होता है, जिसकी गांव में तूती बोलती है। ऐसे ही स्वास्थ्य विभाग में जिला हास्पिटल और सीएमएचओ दफ्तर दो विपरीत ध्रुव वाले शक्ति केंद्र बन गए हैं। इनके प्रभारियों में से एक चांदी काट रहा है, तो दूसरा टाइम। वैसे, सीएमएचओ कहने को तो जिले भर के लिए हैं, और सिविल सर्जन का दायरा सिर्फ जिला हास्पिटल तक ही है। लेकिन वास्तव में काम उल्टा हो रहा है। सीधे-सादे सीएमएचओ अपने ही दफ्तर में बेबस हैं। जबकि जिले भर की स्वास्थ्य सेवाओं पर दखल जिला हास्पिटल के सिविल सर्जन की चलती है, जिनसे खुद एक हॉस्पिटल नहीं संभल पा रहा है। पूर्व आबकारी मंत्री के करीबी और उनकी पसंद से यहां अपनी पोस्टिंग करवाने वाले इस अफसर को भाजपा सरकार से भी भरपूर दुलार मिल रहा है। आचार संहिता लागू रहने के दौरान जमकर खरीदी-बिक्री के नए कीर्तिमान स्थापित करने वाले इस अफसर से विरोधी पस्त हैं। चर्चा तो यह भी है कि इस टैलेंटेड अफसर की नजर सीएमएचओ की कुर्सी पर है और जल्द ही यह बदलाव देखने को मिल सकता है।

—-

अब फार्म का क्या होगा???

महिलाओं को 8 हजार रूपए महीने दिलवाने का फार्म पिछले दरवाजे से जोर शोर से भरा जा रहा था। कई किस्से ऐसे भी सुनाई पड़े, जिनमें दूसरे जिले से यहां ब्याही गई बेटियों के लिए मायके वालों ने फार्म भिजवाया था। आखिर नौकरी न सही, घर बैठे सैलरी मिलने जैसी फीलिंग जो आ रही थी। चुनावी लॉलीपॉप वाला फार्म भरवाने से कतरा रहे पतिदेव अपनी निजी गृहमंत्री के निशाने पर थे, और हालात अविश्वास प्रस्ताव लाने जैसी हो गई थी। पतिदेव की गारंटी के आगे राहुल के न्याय की आस ज्यादा भारी दिखी। लेकिन लोकसभा चुनाव परिणाम आने पर 1 लाख की गारंटी वाले राहुल फेल हो गए, और फार्म भरवाने वाले गायब हो गए। अब मातृ शक्तियां फार्म भरवाने वालों को तलाश रही हैं।

——

मंत्री प्रवास की उम्मीदें

जिले में स्वास्थ्य मंत्री के प्रवास को लेकर लोगों में काफी उम्मीदें जागी थीं। वे एक सामाजिक कार्यक्रम में शामिल होने दंतेवाड़ा पहुंचने वाले थे। उनसे मुलाकात कर शिकायतों का पुलिंदा थमाने की पूरी तैयारी लोगों ने कर रखी थी। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। ऐन वक्त पर उनकी दिल्ली रवानगी हो गई और दंतेवाड़ा प्रवास स्थगित हो गया। वैसे, राज्य गठन के बाद से स्वास्थ्य मंत्री और दंतेवाड़ा जिले का कनेक्शन पिछले दाे दशक में कभी भी ठीक से स्थापित नहीं हो सका। जोगी के बाद रमन सरकार के 3 और भूपेश सरकार के 1 कार्यकाल में भी किसी स्वास्थ्य मंत्री ने यहां आकर जिला हास्पिटल की सेहत देखने की गंभीर कोशिश नहीं की। स्वास्थ्य मंत्री रहते टीएस बाबा ने जरूर जीवनदीप समिति की बैठक और कुछ मसलों पर अपनी स्पष्ट राय दी थी, लेकिन ढाई-ढाई साल वाली लड़ाई के चलते सीएम कका के आगे उनकी चलती ही नहीं थी।

——

पंथी को छाया नहीं…

शक्तिपीठ कॉरीडोर निर्माण और सौंदर्यीकरण के लिए अच्छे खासे पुराने शेड को निकालकर नया शेड निर्माण करवाया गया, जो दिखने में तो पहले से ज्यादा खूबसूरत है, लेकिन यह न तो पूरी तरह धूप से बचा पा रहा है, न ही बारिश से। शेड के हालात को देखकर कहा जा सकता है-

बड़ा हुआ सो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर ।

पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर ।।

दरअसल, इसकी ऊंचाई इतनी ज्यादा रखी गई है कि साइड से पूरी धूप यहां पड़ती है, और शेड की छाया बाहर। ऐसे ही हाल बरसात के वक्त हो रहा है। दोनों तरफ से बारिश के पानी की बौछारें शेड के नीचे आसानी से पहुंचती हैं। डिजाइन में खामी ऐसी है कि इसके पिलर्स को ही खुद बारिश से बचाने का जतन करना पड़ रहा है। आधे पिलर्स को ही ढंका गया है।

—–

ऊंची दुकान फीकी पकवान

इस बार लोकसभा चुनाव मतगणना को लेकर दंतेवाड़ा में अजीबो-गरीब स्थिति रही। मतगणना स्थल से ज्यादातर कांग्रेसी नदारद रहे। सिर्फ दादी के समर्थक ही पेन कॉपी लिए हिसाब करते दिखाई पड़े। विधानसभा चुनाव में कर्मा परिवार से अदावत मोल ले चुके दादी के लिए ऐसा नजारा अप्रत्याशित नहीं था। कहा भी गया है- बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से पाए?  लेकिन भाजपाई खेमे मेें भी लगभग यही स्थिति थी। मतगणना स्थल के आस-पास भाजपाई गिनती के ही नजर आए। वो तो गनीमत रही कि विधानसभा क्षेत्र से भाजपा को लीड भी लगभग ठीक ही मिल गई। फिर भी ऊंची दुकान के मुकाबले पकवान फीका ही रहा।

——

भाईचारा की उम्मीद!

कांग्रेस सरकार के बीते 5 साल के कार्यकाल में  दक्षिण बस्तर में भाजपाई जनप्रतिनिधियों व सरपंचों के साथ जो सलूक हुआ, उससे अब कांग्रेसी अगले 5 साल तक व्यवसायिक भाईचारा कायम रहने की उम्मीद छोड़ बैठे हैं। बस, इतना जरूर है कि जिनके ब्रांच दोनों पार्टियों में खुले हुए हैं, उनके लिए दिक्कत की कोई बात नहीं है। जिनके पास यह सुविधा नहीं है, ऐसे ज्यादातर लोग झंडा बदलकर भाजपा ज्वाइन करने में ही भलाई समझ रहे हैं।   वैसे भी जिन सरपंचों पर फूल छाप का लेबल लगा था, उन्हें 5 साल बेकार बैठना पड़ा था, तो अब बदला लेने की उनकी बारी आ गई है। अब देखना यह है कि अब बचे हुए साढ़े 4 साल में भाईचारा फिर से कायम हो पाता है, या फिर वही पुरानी कहानी दोहराई जाएगी।

——-

कानून की पढ़ाई और महोदय की कंजूसी

दंतेवाड़ा जिला वासियों के लिए कानून की पढ़ाई की सुविधा नए सत्र से मिल पाएगी या नहीं, यह कहना अभी मुश्किल है। इस बहुप्रतीक्षित सुविधा को लेकर न तो नेता गंभीर हैं, और न ही तंत्र।  पिछली बार स्व वित्तीय व्यवस्था से लॉ कॉलेज खोलने का ऑफर मिला था, लेकिन “महोदय” की कंजूसी के चलते डीएमएफ से लॉ की कक्षाओं के लिए राशि नहीं मिली। इस बार सरकार भी नई है और अफसर भी, तो सकारात्मक पहल की उम्मीदें जागी हैं।

——————-

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

खुद की काबिलियत को पहचानना ही सफलता की पहली सीढ़ी – मीणा

नवोदय जीवन किसी तपस्या से कम नहीं नवोदय विद्यालय बारसूर के बच्चों ने दी शानदार प्रस्तुति विद्यालय का पैनल इंस्पेक्शन करने पहुंची टीम ड्रिल, सांस्कृतिक...