इंद्रावती पार चुनाव करवाना होगी बड़ी चुनौती

– इस बार शिफ्ट नहीं होंगे बूथ
– 2 पुल के निर्माण के बावजूद माड़ इलाके में प्रभावी पैठ नहीं जमा सकी फोर्स

Bastar Update/Dantewada
छिंदनार के नजदीक इंद्रावती नदी के पाहुरनार घाट और बड़े करक़ा घाट पर करीब डेढ़ सौ करोड़ रुपये खर्च कर 2 पुल बनवाने के बावजूद इस बार इंद्रावतीं नदी पार विधानसभा चुनाव करवाना फोर्स और प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती साबित होगी। ढाई साल पहले पाहुरनार घाट पर नए पुल के उद्धाटन के लिए पहुंचे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इसे अबूझमाड़ का दक्षिणी द्वार करार दिया था । उस वक्त पुलिस व प्रशासन के अफसरों ने जिस तरह के विकास, विश्वास और सुरक्षा की त्रिवेणी का दावा किया था, उस पर पानी फिर गया है। तत्कालीन कलेक्टर व एसपी के तबादले के बाद इस तरफ न पुलिस की पैठ जम सकी, न ही प्रशासन की प्रभावी उपस्थिति दिखी है।  तत्कालीन एसपी डॉ अभिषेक पल्लव ने आत्म समर्पण का अभियान लोन वर्राटू चलाने के साथ ही माड़ इलाके में पाहुरनार, हांदावाड़ा समेत आधा दर्जन कैम्प स्थापित करने की जो योजना बनाई थी, उनके तबादले के बाद ठंडे बस्ते में चली गई। पुल बनने के बावजूद बारिश में यह इलाका पहुंच विहीन हो जाता है। गांवों को आपस मे पक्की सड़कों से जोड़ने में नक्सली बाधक बन रहे हैं। अब नवम्बर में संभावित विधानसभा चुनाव में इंद्रावती नदी के उस पार जाकर नक्सलियों के गढ़ में चुनाव करवाना काफी दुष्कर कार्य होगा। पिछले चुनावों में इस तरफ के सभी बूथ सुरक्षा कारणों का हवाला देकर इंद्रावतीं नदी के इस पार स्थित छिंदनार, मुचनार, बारसूर जैसी जगहों पर शिफ्ट किए जाते रहे हैं। इस बार चुनाव आयोग दोनों नए पुल के बनने के बाद इस तर्क को खारिज कर सकता है कि नदी उस पार चुनाव करवाना आसान नहीं है।

माड़ इलाका नक्सलियों का बफर जोन

इंद्रावतीं नदी पार का इलाका अब तक नक्सलियों का बफर जोन माना जाता रहा है। इसकी वजह इंद्रावती नदी की जलधारा रही है, जिससे इसे सुरक्षा कवच की तरह इस्तेमाल कर नदी के उस पार नक्सली बेख़ौफ़ ट्रेनिंग कैम्प से लेकर तमाम गतिविधियां संचालित करते आ रहे हैं।


दोनों पुल के निर्माण से दंतेवाड़ा जिले के पाहुरनार, छोटे छिंदनार, तुमिरगुंडा, बड़े करका, छोटे करका, पदमेटा समेत दर्जन भर गांवों के अलावा बीजापुर व नारायणपुर जिले के दर्जनों गांव के करीब 10 हजार ग्रामीणों को इंद्रावती नदी पार करने के लिए डोंगी का सहारा लेने की मजबूरी से निजात मिल गई है। हर साल नाव पलटने से दर्जनों मौतों को देखते हुए सरकार ने इस पुल के निर्माण की मंजूरी दी थी।

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