साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम ‘शब्द बाण’ (भाग-61)
15 दिसंबर 2024
शैलेन्द्र ठाकुर । दंतेवाड़ा
लकड़ी में कैसे बदला तेंदुआ?
जिले में एक तेंदुआ ने रूप बदला और वो लकड़ी के गट्ठे में तब्दील हो गया। इससे पुलिस और वन विभाग के बीच संभावित खींचतान समय रहते टल गई। वैसे, यह तेंदुआ कॉमिक्स या फंतासी फ़िल्म की तरह कोई इच्छाधारी जीव नहीं था, जो रूप बदल सकता था।
दरअसल, इन दिनों पुलिस कप्तान के दफ्तर के सामने बाउंड्रीवाल की खूबसूरती बढ़ाने म्यूरल आर्ट बनवाया जा रहा है। बता दें कि दीवार पर उभरी हुई मूर्तियों के जरिए झांकी पेश करने की विधा को म्यूरल आर्ट कहा जाता है। यहां हुआ यह था कि म्यूरल कलाकृति बनाने वाले कलाकारों ने अति उत्साह में एक जगह ग्रामीणों द्वारा कंधे पर लकड़ी से तेंदुआ को उल्टा लटकाकर ढोने का चित्रण कर दिया था। ग्रामीणों की बहादुरी बताने के हिसाब से तो यह ठीक था, लेकिन तेंदुआ जैसे हिंसक और लुप्तप्राय व संरक्षित वन्य जीव के शिकार को प्रोत्साहित करने जैसा मामला बनता था। इससे पहले कि मीडिया या वन विभाग पुलिस पर आपत्ति करता, किसी ने आगाह कर दिया। फिर क्या था, आनन-फानन में दोनों आदमियों के बीच से तेंदुआ को खरोंचकर हटा दिया गया। उसकी जगह लकड़ी का बड़ा लट्ठा चित्रित कर दिया। इस तरह से वन विभाग फिर एक उड़ता तीर लेने से बच गया। वैसे भी विभाग की ग्रह दशा इन दिनों ठीक नहीं चल रही है।
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घूम-घूम कर भूमिपूजन
नगर पालिका चुनाव की आचार संहिता लागू होने में महज कुछ दिन पहले सरकार ने निकायों को फंड जारी कर दिया है। अब माननीयों की समस्या यह है कि इसे कार्यकाल खत्म होने से पहले कैसे खर्च करें। इसका तोड़ निकालते हुए वार्ड-वार्ड घूम-घूमकर भूमिपूजन किया जाने लगा है। जिसमें न तो शुभ मुहूर्त देखा जा रहा है, न ही पंडित की उपलब्धता। आम जन हैरान-परेशान हैं। लोगों का कहना है- काश! इतनी तत्परता पूरे 5 साल बनी रहती।
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सुशासन काल में भी उतर रहे इंजन
पूरे देश और छत्तीसगढ़ को मिलाकर डबल इंजन सरकार चल रही है और दावा किया जा रहा है कि ‘विकास’ फर्राटे से दौड़ रहा है। छत्तीसगढ़ में बीजेपी सरकार के सुशासन और एक साल की शौर्य गाथा सुनाते पार्टी के लोग नहीं थक रहे हैं। पर इन सबके बीच दंतेवाड़ा-बैलाडीला मार्ग पर सफर करने वालों की पीड़ा जस की तस है। इस सड़क पर रोज सफर करने वाले लोग अपनी नई-नई गाड़ियों के साल , दो साल में कंडम होने की व्यथा सुना रहे हैं। एक पीड़ित ने बताया कि उसकी सिर्फ एक साल पुरानी बाइक का इंजन उतारने की नौबत आ गई। उसका कहना था कि भले ही डबल इंजन सरकार पूरी ताकत से दौड़ रही हो, पर ऐसी खस्ताहाल सड़कों से आम आदमी का इंजन उतर रहा हो, तो डबल इंजन की रफ्तार का क्या फायदा? अब इस सड़क निर्माण की तकलीफ देने वाले भूपेश कका के मुंह से यह सुनना ही बाकी रह गया है कि पीड़ा हमने दी है, इसे आकर हम ही सुधारेंगे।
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मंत्री का डिप्लोमैटिक जवाब
छत्तीसगढ़ में भाजपा सरकार का एक साल पूरा होने पर सुशासन पर्व मनाने पहुंचे वन मंत्री पर सवालों के बाण चलाने की पूरी तैयारी मीडिया ने कर रखी थी। लेकिन राजनीति में अपने दीर्घ अनुभव और राजनीतिक परिपक्वता का फायदा उठाकर वन मंत्री न सिर्फ इस चक्रव्यूह को तोड़ने में कामयाब हो गए, बल्कि मास्टर ब्लास्टर क्रिकेटर सचिन की तरह वन विभाग की पारी को फॉलोऑन के खतरे से बचा ले गए। वन मंदिर से जुड़े आरोपों पर मंत्री ने कहा कि इसकी प्रशासकीय स्वीकृति डेढ़ साल पहले भूपेश सरकार में मिली और काम भी शुरू हुआ था। अब इसे ठीक करवाकर आम जनता के उपयोग में लाने की कोशिश हो रही है। मंत्री ने इस एक तीर से दो निशाने साधे। पहला यह कि इस जवाब से गेंद कांग्रेस के पाले में चली गई, जिसके नेता इस मामले में उग्र प्रदर्शन कर चुके थे। कांग्रेसी अपने ही सरकार में इस वाटिका की शुरुआत का क्रेडिट लेने से वंचित रह गए। दूसरा यह कि उस दौर में एक नामी बाबा की तर्ज पर हरेक मंजूरी पर ‘दशवंद’ लेने वाले तत्कालीन ‘महोदय’ पर अघोषित ठीकरा भी फोड़ दिया गया।
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मोनालिसा को टक्कर देती भैंस!
दंतेवाड़ा में नव निर्मित जिस वन मंदिर वाटिका का वन मंत्री ने लोकार्पण किया, उस वाटिका में कैंटीन की दीवार पर बनी वन भैंसे की पेंटिंग विख्यात इटालियन चित्रकार लिनियार्डों की मशहूर पेंटिंग ‘मोनालिसा’ को टक्कर देती प्रतीत होती है। मोनालिसा की रहस्यमयी मुस्कान की तरह इस भैंस की आंखें जीवंत हैं। यह आदम कद भैंस 180 डिग्री में भी घूमकर लोगों को घूरती है। सिर्फ आंखें ही नहीं, बल्कि इसका पूरा शरीर घूमता हुआ दिखता है। कुल मिलाकर सीसीटीवी के मूविंग कैमरे वाला गज़ब का इल्यूजन इफ़ेक्ट चित्रकार ने पैदा कर दिया है। मजेदार बात है कि यह थ्रीडी इफ़ेक्ट उसने जानबूझकर पैदा नहीं किया, अनायास ही ऐसा बन गया। अब ये विभाग पर निर्भर है कि वह लुप्तप्राय दुर्लभ राजकीय पशु की इस अद्भुत पेंटिंग को लुप्त होने से कैसे बचाता है।
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न पुष्पा झुकेगा, न सरकार!
नगरीय निकायों के प्लेसमेंट कर्मी महीने भर से हड़ताल पर हैं। वे साउथ फिल्मों के एक्टर अल्लू अर्जुन के किरदार “पुष्पा” की तरह नहीं झुकने को लेकर अड़े हुए हैं, तो सरकार भी “झुकेगा नहीं…” वाली नीति पर कायम है। इस चक्कर में निकायों में पेयजल और स्ट्रीट लाइट व्यवस्था चरमराई पड़ी है। दंतेवाड़ा में पहले तो वैकल्पिक कर्मचारियों ने किसी तरह फ़िल्टर प्लांट ऑपरेट करते हुए भर-भर कर चूना-फिटकरी-एलम घोला। नलों से कसैला पानी आने की खबरें मीडिया छपी, तो बिना फ़िल्टर के ही नलों में मटमैला पानी भेजना शुरू कर दिया। अब आम जनता परेशान है। चाकू कद्दू पर गिरे, या कद्दू चाकू पर, कटना तो कद्दू यानी आम जनता को ही है।
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वार्ड आरक्षण को लेकर धड़कनें तेज
निकाय चुनाव और पंचायतों के लिए वार्डवार आरक्षण की तारीख की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। इससे चुनावी मैदान में ताल ठोंकने की चाहत रखने वालों की धड़कनें तेज हो गई है। पार्टी की टिकट मिले या या न मिले, अपने मुताबिक आरक्षण नहीं मिला तो चुनाव लड़ने की संभावनाओं पर फर्क पड़ना तय है। फिलहाल इस लाटरी के परिणाम का बेसब्री से इंतजार है।
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