(7 जुलाई 2024)
साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम शब्द बाण (भाग-39
शैलेन्द्र ठाकुर @ दंतेवाड़ा
दंतेवाड़ा जिले में बंगला वार चल रहा है। सरकारी बंगले को लेकर एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप जारी है। आरोप है कि पहले जिन बंगलों पर अपनी सरकार में कांग्रेसी नेता काबिज थे, उन बंगलों को खाली करवाकर भाजपाई नेताओं को एलॉट किया जा रहा है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि आरोप-प्रत्यारोप की इस जंग में लोग एक-दूसरे की पोल खोल रहे हैं और नई-नई बातें पता चल रही हैं। किसने, कब, कहाँ, कौन सा घोटाला या कारनामा किया, ये सब बातें सार्वजनिक हो रही हैं। इससे आम जन का जनरल नॉलेज ही बढ़ रहा है। मित्रता निभाने और कर्ज चुकाने के इस दौर में पार्टीगत प्रोटोकॉल और निष्ठा ताक पर रख दी गई है। कहा गया है कि इतिहास खुद को दोहराता है। महोदय युग के स्वर्णकाल में जिन भाजपाई नेताओं ने सरकार और प्रशासन के पक्ष में बयानबाजी की थी, अब उनका कर्ज चुकाने का फर्ज कांग्रेसी निभा रहे हैं। इससे पार्टी के भीतर ही खलबली मची हुई है।
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खटिया खड़ी कर दी अफसरों ने
दंतेवाड़ा जिले में आदिवासियों की बेहतरी और उनके विकास के लिए समर्पित ट्राइबल विभाग का एक और कारनामा सामने आया है। खबर है कि इस विभाग के अफसरों ने इस खटिया खड़ी, बिस्तर गोल कर देने वाला प्रचलित मुहावरा सार्थक कर दिया है। आश्रमों व आवासीय स्कूलों में खटिया यानी पलंग-गद्दे सिर्फ कागजों में ही खरीदे और बच्चे अब टूटे-फूटे खाटनुमा बेड पर सोने को मजबूर हैं। अपना भविष्य गढ़ रहे बच्चों और पूरे सिस्टम की सही मायनों में खटिया खड़ी कर दी गई है। इससे संबंधित अफसरों से लेकर स्टोरकीपर तक की भूमिका पर सवाल खड़े होने लगे हैं। आखिर मूल पदस्थापना वाली जगह से उठकर आदिम जाति कल्याण विभाग के सबसे मलाईदार प्रभार पर वर्षों से कुंडली जमाने की कोई तो वजह रही होगी।
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डीजल नहीं निकला बाड़ी में, शौच जा रहे झाड़ी में
रमन सरकार (वर्जन 1.0) में रतनजोत रोपने का अभियान जोर-शोर से चलाया गया। जिसका नारा दिया गया था-
“डीजल नहीं अब खाड़ी से, वह तो मिलेगा बाड़ी से।“
खैर, रतनजोत से डीजल बनाने का यह अभियान कालांतर में फेल हो गया। न तो डीजल बाड़ी से निकला, और न ही लोग शौच के लिए झाड़ियों की निर्भरता से पूरी तरह मुक्त हो पाए। दरअसल, दंतेवाड़ा कुछ साल पहले पहले शत प्रतिशत ओडीएफ यानी खुले में शौच मुक्त जिला घोषित हो गया, लेकिन लोग अब भी शौच के लिए झाड़ी में जा रहे हैं। आधे-अधूरे और स्तरहीन शौचालय मुर्गी के दड़बे बन गए और इधर ओडीएफ बनाने वाले स्वच्छ भारत मिशन का जिला समन्वयक फर्जी दस्तखत से लाखों रुपए का आहरण कर फरार हो चुका है। यह वही मल्टी टैलेंटेड कर्मचारी है, जो सामान्य पानी से बाल झड़ने का ख़ौफ़ दिखाकर अफसरों को मिनरल वाटर से नहलाता आ रहा था। बाद में सरकारी पैसे के चेक पर उसी अफसर के फर्जी दस्तखत कर शैम्पू भी कर दिया। खैर, दक्षिण बस्तर में ऐसे टैलेंटेड लोगों की कमी तो पहले भी कभी नहीं रही। बने-बनाए स्वागत द्वार पर सिर्फ टाइल्स चिपका कर 60 लाख की बिलिंग करने का कारनामा यहां हो चुका है।
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पालिका का मच्छर प्रेम
स्वास्थ्य विभाग डेंगू और मलेरिया से निपटने के लिए सारा जोर लगा रहा है, इसके लिए सारा अमला झोंक दिया है। लेकिन दूसरी तरफ दंतेवाड़ा नगर पालिका इस मामले में स्वास्थ्य विभाग के साथ अपनी तरह का असहयोग आंदोलन चलाती दिख रही है। पालिका को स्वास्थ्य विभाग से भले ही बैर न हो, लेकिन मच्छरों से खासा प्रेम है, यह साफ दिखता है। यहां न तो मच्छरों को भगाने फॉगिंग हो रही है, न ही दूसरे उपाय किए जा रहे हैं। कई नालियां मच्छर पालन टैंक बन चुकी हैं। तकनीकी खामी या आधी-अधूरी होने की वजह से इन नालियों में गंदा पानी महीनों तक जाम पड़ा रहता है। टेकनार रोड में पंचवर्षीय योजना की तर्ज पर बन रही नाली तीसरे साल में भी पूरी नहीं हाे सकी है।
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डबल इंजन सरकार में आरओबी की उम्मीद
नव निर्वाचित सांसद महेश कश्यप ने देश की राजधानी के अपने पहले ही प्रवास पर केंद्रीय भूतल परिवहन व राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी से मुलाकात कर दंतेवाड़ा में रेल्वे फाटक पर ओवरब्रिज की मांग रखी। इससे रेल्वे फाटक पीड़ितों में काफी उम्मीदें जाग उठी हैं। इस उम्मीद की वजह यह भी है कि मांग इस बार सीधे संबंधित केंद्रीय मंत्री गडकरी के सामने रखी गई है और खरी-खरी बात कहने के लिए चर्चित गडकरी इस बार दंतेवाड़ा वासियों को मायूस नहीं करेंगे, ऐसा लोगों का मानना है। हालांकि इसके पहले पूर्व सांसद दीपक बैज भी अपने कार्यकाल में लोकसभा में शून्यकाल के दौरान यह मसला उठा चुके थे। फर्क यह था कि तब डबल इंजन सरकार नहीं थी। एक इंजन भाजपा की थी, और दूसरी कांग्रेस की। यही वजह है कि उनकी आवाज सिर्फ संसद तक ही सीमित रह गई। इस बार दोनों ही इंजन भाजपा के हैं, तो आरओबी की उम्मीद वाली ट्रेन को दोनों इंजन मिलकर खींच निकालेंगे, इसकी पूरी उम्मीद है।
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चुनाव के बाद भी रफ्तार नहीं पकड़ पा रहा विकास
विधानसभा चुनाव के बाद लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लंबे समय तक प्रभावी रही, जिसकी छाया में दंतेवाड़ा जिले में विकास का पौधा पनप नहीं पाया। लेकिन आचार संहिता हटने के बावजूद विकास में उतनी तेजी नहीं आ सकी, जितनी आनी चाहिए। अब तक यहां न तो मंत्री स्तर की कोई बड़ी समीक्षा बैठक हुई है, और न ही विकास को लेकर उस स्तर की हलचल मची है। फिलहाल सारा फोकस नियद नेल्ला नार पर बना हुआ है। अब नगरीय निकाय और इसके बाद त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में सारा अमला जल्द ही व्यस्त होने वाला है। ऐसे में अगले लगभग कुछ महीने विकास की रफ्तार सुस्त ही रहेगी।
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कहां अटकी प्रमोशन की फाइल?
दंतेवाड़ा जिले में स्वास्थ्य कर्मियों को मिलने वाले नियमित प्रमोशन की फाइल सीएमएचओ दफ्तर में अटकी हुई है। ड्रेसर, कंपाउंडर समेत अन्य दर्जनों कर्मचारी अपने प्रमोशन के इंतजार में बैठे हैं। राज्य स्तर से हरी झंडी मिलने के बावजूद प्रमोशन क्यों नहीं हो रहा है, इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है। प्रमोशन की कृपा कहां अटकी हुई है, इसका पता लगाने के लिए कर्मचारी बाबाओं के दरबार के चक्कर काट रहे हैं। कुछ अपनी सेटिंग जमाने में लगे हैं, ताकि वरीयता सूची का झंझट ही न रहे।