एक अनार 6 बीमार, स्वास्थ्य विभाग की बिगड़ी तबियत (शब्द बाण-34)

एक अनार 6 बीमार, स्वास्थ्य विभाग की बिगड़ी तबियत (शब्द बाण-34)

( 2 जून 2024)
साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम “शब्द बाण” (भाग-34)

✍️   शैलेन्द्र ठाकुर @ दंतेवाड़ा

दक्षिण बस्तर में स्वास्थ्य विभाग का हाल ऐसा है कि इसे खुद किसी पैकेज पर अपनी सेहत की जांच करवाने की जरूरत है। कई सारी बीमारियां हैं, लेकिन मूल बीमारी की जड़ तक कोई नहीं पहुंच पा रहा है। एलोपैथी के सिद्धांत के आधार पर लक्षण देखकर दवाएं दी जा रही हैं, आयुर्वेद के हिसाब से बीमारी की मूल वजह का इलाज नहीं हो रहा है। अब इसे ही देख लें, जिले के सीएमएचओ दफ्तर में अधिकृत रूप से एक ही शासकीय वाहन है, और विभागीय 6 ड्राइवर यहां पदस्थ हैं। अब 8-8 घंटे की शिफ्ट पर भी काम कर लें, तो भी 3 को काम करने का मौका ही नहीं मिलता है। वहीं दूसरी तरफ कई पीएचसी-सीएचसी में एम्बुलेंस चलाने काे एक ड्राइवर तक नहीं है।
किसी ने क्या खूब कहा है-
अजीब दस्तूर है दुनिया का साकी…
जाम उसी को मिलता है जिसे पीना नहीं आता। “

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वाट्सअप कॉल कल्चर की विदाई
दंतेवाड़ा जिले के लिए सबसे बड़ी राहत की बात यह है कि सरकार बदलने के बाद से यहां वाट्सअप कॉल कल्चर की विदाई हो गई। इसके पहले भूपेश सरकार के अंतिम 2 साल में अफसर-कर्मियों से लेकर नेताओं तक वाट्सअप कॉल का नया कल्चर हावी हो गया था। ऐसा इसलिए कि कहीं कोई बातचीत को रिकार्ड ना कर ले और डीलिंग सार्वजनिक हो जाए। वाट्सअप कॉल पर जमकर गरियाने, धमकाने का काम बेखौफ चलता रहा। सरकार बदली और जिले में भी बड़ा बदलाव हुआ। नई कार्य संस्कृति विकसित होने के संकेत मिले। अब वाट्सअप कॉल पर आओ, वाला निर्देश सुनाई नहीं देता। दूरदराज से बड़ी मुश्किल से साधारण वाइस कॉल पर कनेक्ट हो पाने वाले आम आदमी के लिए यह बड़ी राहत की बात है।
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गौठान अब बनेंगे गौ-अभ्यारण्य!!
अंतत: विष्णुदेव ने गौ-माता के कल्याण की योजना सोची और सरकार ने सड़क पर पसरे रहने वाले आवारा मवेशियों के लिए गौ-अभ्यारण्य बनाने का ऐलान किया है। संभव है कि इस बहाने भूपेश कका वाले पुराने गौठानों के दिन फिर जाएं। अब देखना यह है कि पूर्व में जोर-शोर से शुरू किए गए गौठानों की तरह इस योजना का भी वहीं अंजाम होता है, या फिर योजना धरातल पर फलीभूत होती है। वैसे मवेशियों को हांककर गौठान या अभ्यारण्य तक पहुंचाने में स्टाफ की कमी वाली पुरानी समस्या का कोई तोड़ फिलहाल नहीं दिखता।
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एसपी चला रहे पंचायतें
महिला आरक्षण के नाम पर मातृ शक्तियों को भले ही सरपंच का पद नाम मिल जाता है, लेकिन असली सरपंची तो एसपी यानि सरपंच पति ही निभाता है। आलम यह है कि ज्यादातर सरकारी कर्मचारी अपनी पत्नी को सरपंच बनवाकर नौकरी के साथ राजनीति चमकाने के मौके का फायदा भी उठाने लगे हैं। कई सरकारें आईं और गईं, लेकिन पंचायतों में एसपी की दखल कम होने की बजाय बढ़ती ही चली गई।

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बढ़ी धड़कनें
चुनाव परिणाम को लेकर भाजपाइयों व कांग्रेसियों की धड़कनें तेज हो गई हैं। हालांकि विधानसभा चुनाव जितनी उत्सुकता लोकसभा के नतीजे को लेकर नहीं दिख रही है। यही वजह है कि स्ट्रांग रूम में ईवीएम की रखवाली को लेकर भी कोई ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखी।
इसके बाद भी इस विधानसभा से मिलने वाली बढ़त या पिछड़ने वाले अंतर के गड्ढे की चिंता जरूर जिम्मेदारों को सता रही है।
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आचार संहिता का साया
मतगणना के बाद आचार संहिता हटेगी और रुकी हुई फाइलें फिर से चलने लगेंगी। इस बात को लेकर लोग खासे उत्साहित हैं। वैसे अभी आचार संहिता का साया हटा भी नहीं है और ऐसे मामलों पर बवाल मचना शुरू हो गया है। सबसे ज्यादा खींचतान सत्तारूढ़ पार्टी के खेमे में ही मचने वाली है।
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संविदा अफसर मालामाल

जिले में कार्यरत कुछ संविदा अफसर-कर्मी मालामाल हो रहे हैं। सरकार किसी भी पार्टी की हो, इन्हें उसके हिसाब से एडजस्ट होना अच्छी तरह से आता है। पहले भी कुछ बड़े विभागों में मलाईदार पदों पर ऐसे जादुई व करामाती लोग झंडे गाड़ चुके हैं, जिन्हें बड़ी मुश्किल से टाला जा सका था। अब भी नई सरकार के पूरी तरह फॉर्म में आने के बाद फिर से ऐसे करामात शुरू होने के आसार दिख रहे हैं।
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निगम-मंडलों की ख्वाहिश
कहते हैं- इच्छाएं अनंत हैं। दक्षिण बस्तर भी भला कैसे इससे अछूता रह सकता है। अब सत्तारूढ़ होने के बाद भाजपाई खेमे में निगम-मंडलों में रसूखदार पदों पर एडजस्ट होने की आस जाग उठी है। यही वजह है कि चुनाव प्रचार से लेकर संगठनात्मक गतिविधियों में अपनी सक्रियता दिखाने का मौका नहीं छोड़ा गया। वैसे पिछली बार भी दक्षिण बस्तर के हिस्से में कुछ खास नहीं आया था। फिर भी उम्मीद पर दुनिया कायम है।

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