(26 मई 2024)
साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम शब्द बाण (भाग-33)
✍️ शैलेन्द्र ठाकुर @ दंतेवाड़ा
मुंह से छिना निवाला
वन विभाग की कंटीली फैंसिंग में फंसकर शहादत देने वाले मूक वन्य जीव हिरण के मामले में बड़ी ही दिलचस्प बात सामने आई है। खबर है कि मृत हिरण को गुपचुप तरीके से डकारने की तैयारी में विभाग के ही कुछ लोग जुट गए थे। लेकिन इससे पहले कि डायनिंग टेबल पर हिरण पहुंचता, घटनाक्रम की तस्वीरें वायरल हो गई। वो तो गनीमत थी कि मीडिया वालों ने हल्ला मचाया और मजबूरन हिरण का पीएम करवाकर दाह संस्कार करवाना पड़ा। पुराने जमाने में प्रचलित रहे आखेट प्रथा पर पाबंदी तो है, पर कुछ लोग अब तक इसके मोह से उबर नहीं पाए हैं। जब बाड़ ही फसल चरने पर उतारू हो जाए तो फसल की रक्षा कैसे हो?
स्कूलों की अग्नि परीक्षा अब
महोदय के कार्यकाल में स्कूलों की मरम्मत के नाम पर जिस तरह से लाखों रूपए का चूना लगाया गया था, उससे एक नया रिकार्ड कायम हुआ था। स्कूल जतन योजना की राशि से स्कूल भवनों की मरम्मत का खेला हुआ। मरम्मत तो हुई ही नहीं, सिर्फ चूना पुताई करवाकर लाखों रूपए निकाल लिए गए। इस काम में मजदूर से लेकर ठेकेदार तक बाहर बुलवाए गए थे। अब उन स्कूलों को अब नए सत्र के मानसून सीजन में अग्नि परीक्षा से गुजरना होगा। सचमुच छत की मरम्मत हुई होती तो बारिश का पानी नहीं टपकता, लेकिन सिर्फ दीवारों पर पोते गए चूने से बारिश में बचाव कैसे होगा, ये तो वक्त ही बताएगा।
एनजीजीबी के बाद अब ट्रिपल एन
ट्रिपल एन शब्द अब जल्द ही प्रशासनिक शब्दावली में शामिल होने को आतुर होता दिख रहा है। यह ट्रिपल एन इंजीनियरिंग संबधी ट्रिपल आईटी टाइप का कोई तकनीकी संस्थान नहीं है। दरअसल, राज्य सरकार के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट “नियद नेल्ला नार” का नया शार्ट फार्म है, जिसका मतलब “आपका अच्छा गांव” है। प्रशासनिक समीक्षा में अब इसके शुरूआती अंग्रेजी अल्फाबेट यानि एनएनएन को लेकर ट्रिपल एन कोड गढ़ा लाने लगा है। इसके पहले भूपेश सरकार में भी सीएम का ड्रीम प्रोजेक्ट नरवा गरवा घुरवा बाड़ी भी एनजीजीबी के नाम से प्रचलित हो गया था। नई सरकार का नया प्रोजेक्ट सिर्फ तीन शब्दों का है, उसका भी उच्चारण करने में लोगों को समय की कमी महसूस हो रही है। शार्टकट के चक्कर में ये मौलिक शब्द कहीं अपनी सार्थकता न खो दें।
हेलमेट वाले टॉकीज में शो फिर से शुरू
फाल्स सीलिंग गिरने की घटना के बाद काफी दिनों तक बंद रहे टॉकीज में शो फिर से शुरू तो हो गए हैं, लेकिन दर्शक अब भी कतरा रहे हैं। सपरिवार फिल्म देखने की बजाय पहले वेट एंड वॉच की तर्ज पर स्थिति सामान्य होने का इंतजार किया जा रहा है। अब टॉकीज प्रबंधन हेलमेट मुहैया कराने से तो रहा, अपने रिस्क पर ही फिल्में देखी जा सकती हैं।
इकोनॉमी वारियर्स की बल्ले बल्ले
सरकार ने सुरा प्रेमियों के कल्याण के लिए नई स्कीम लागू की है, जिससे सुरा प्रेमियों में हर्ष व्याप्त है और इस कारोबार से जुड़े लोगों में मायूसी छाई है। दरअसल, यह स्कीम कैशलेस भुगतान की है। यानि फोन-पे, गूगल-पे से भुगतान वाली व्यवस्था। इससे कोड स्कैन करते ही मदिरा का ओरिजिनल एमआरपी सामने आ जाएगी और अनाप-शनाप कीमत वसूलने की पहले वाली शिकायत दूर होगी। अब समुद्र मंथन की तरह खींचतान और लड़ने-झगड़ने की जरूरत सरकार की अर्थव्यवस्था संभालने वाले इकॉनॉमी वारियर को नहीं पड़ेगी। इकोनॉमी बूस्टर पेय अब वाज़िब दाम में उपलब्ध हो सकेगी।
डायनामिक होम मिनिस्टर
राज्य गठन के बाद पहली बार टक्कर का होम मिनिस्टर छत्तीसगढ़ को मिला है, ऐसी धारणा बनने लगी है। पहली बार के विधायक विजय शर्मा ने गृह मंत्री बनते ही इस फील्ड में चौके-छक्के जड़ने शुरू कर दिए। निर्णय लेने की गजब की क्षमता और बोल्डनेस की वजह से चर्चित होने लगे। मजेदार बात यह है कि इसके पहले की सरकारों में ज्यादातर विधायक मंत्री तो बनना चाहते थे, लेकिन गृह मंत्री पद से दूर भागते थे। ऐसे में किसी को भी यह विभाग जबरन थोप दिया जाता था, और वो बेमन से काम किया करते थे। दरअसल, गृहमंत्री पद कांटों भरा ताज समझा जाता था। कारण यह था कि कोई भी मंत्री अंदरवाले दादाओं की सीधी दुश्मनी मोल लेना नहीं चाहता था, जो कि इस पद की वजह से मुफ्त में मिलने वाली थी।
अब भी नहीं छूट रहा सुकमा का मोह
भूपेश कका के कार्यकाल में ढाई-ढाई साल वाला फार्मूला इतना ज्यादा लोकप्रिय हो गया था कि इसका अनुकरण दंतेवाड़ा जिले में पूरी तरह से किया जाने लगा। तभी तो बीते ढाई साल वाले अढ़ैया में दंतेवाड़ा-सुकमा जिले का रिश्ता कुछ ज्यादा ही गहरा हो गया है। दंतेवाड़ा जिले की कुंडली से अढ़ैया के प्रकोप का असर जाता नहीं दिख रहा है।
आलम यह है कि प्रशासन, पुलिस से लेकर इंसानों और मवेशियों के इलाज वाले विभाग तक में सुकमा का अनुभव ले चुके अफसर दंतेवाड़ा में पदस्थ किए जाते रहे हैं, या फिर सुकमा में बैठकर दंतेवाड़ा का प्रभार संभालते रहे हैं। यहां तक कि पीएमजीएसवाय जैसा तकनीकी विभाग भी पहले सुकमा से ही संभाला जा रहा था। ढाई साल वाले अढ़ैया तक तो बात ठीक थी, लेकिन इनमें से कुछ शनि की साढ़े साती बनकर कहर ढाते दिखे।
ऐसे ही, जिला हास्पिटल में सुकमा से बुलाए गए प्रभारी अफसर सरकार बदलने के बाद भी जमे हुए हैं और धोनी की तरह बेस्ट फिनिशर साबित हो रहे हैं। अब हास्पिटल में प्लंबर और इलेक्ट्रीशियन संबंधी काम के ठेकेदार तक सुकमा से आने लगे हैं।
आखिर हो भी क्यों न, कप्तान को अपनी टीम चुनने और किससे, कब और कहां बैटिंग व बॉलिंग करवानी है, यह तय करने का अधिकार तो होता ही है। मजे की बात यह है कि पिछली सरकार के कद्दावर मंत्री रहे ‘दादी’ की खास पसंद के तौर पर उनकी पोस्टिंग यहां हुई थी। अब नई सरकार में भी उन्हें छेड़ने की हिम्मत भाजपाई नहीं जुटा पा रहे हैं।