(5 मई 2024)
🏹साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम शब्द बाण भाग-31 ✒️
✍️ शैलेन्द्र ठाकुर @ दंतेवाड़ा
सादगी के चर्चे
दक्षिण बस्तर में पहली बार किसी कलेक्टर के कार्यकाल में उनके चेम्बर में बगैर पर्ची के मुलाकातियों की एंट्री हो रही है। कोई पर्सनल मुलाकात नहीं, सबके सामने मुलाकात और सबके सामने बात। आम जन खुश हैं। कलेक्टर साहब की इस सादगी के चर्चे आम हैं। वरना, इसके पहले वाले ‘महोदय’ ने तो इसे कैकयी का कोप भवन बनाकर रखा था, जिसमें महोदय मुंह फुलाकर बैठे रहते। सीसी कैमरे से जुड़ी स्क्रीन पर एक नजर रहती थी, फिर जिसे मन हो एंट्री दो, मन न हो तो वेटिंग हॉल में घंटों बिठाकर रखो। मजेदार बात यह थी कि चेंबर के सामने ऑपरेशन थिएटर की तरह लाल बत्ती जलती रहती थी। अगर कोई ‘काम’ का आदमी न हुआ, भले ही वो कोई ‘माननीय’ क्यों न हो, लाल बत्ती बुझती ही नहीं थी। लाल बत्ती जलती हुई देखकर आगंतुक को भीतर भेजने का साहस दरबान नहीं कर पाते थे। फिर अचानक महोदय कोप भवन से निकलकर रवाना हो जाते थे।
बोरे भात का मुद्दा भी बासी हुआ
छत्तीसगढ़िया वाद के नाम पर सुर्खियां बटोरने वाले कका की कुर्सी क्या छिन गई, चेले-चपाटों ने भी मुंह मोड़ लिया। गोठान झाड़ियों से पट गए। सबसे ज्यादा असर मई दिवस पर दिखा। कका के सीएम रहते जो लोग ताजा गर्म भात को पानी में बोरकर चाव से बासी खाते हुए समारोह पूर्वक फोटो सेशन करवा रहे थे, और पूरी सोशल मीडिया बोरे बासी से पट गई थी, वो इस बार सीन से गायब रहे। यानी यह मुद्दा ही बासी हो गया। प्रशासन तंत्र ने भी इसका नाम तक नहीं लिया। वैसे डॉ रमन ने कभी ठीक ही कहा था कि अफसर सूरजमुखी होते हैं, उनका क्या दोष? जिधर सत्ता का सूरज होता है, उधर ही मुंह घुमा लेते हैं।
नेताओं का उस्तरा और पत्रकारों का गला
दक्षिण बस्तर के बीजापुर में कांग्रेस कमेटी ने बाकायदा पत्र जारी कर 4 पत्रकारों का बहिष्कार कर दिया। “जो तुम को हो पसंद.. वही बात कहेंगे, तुम दिन को अगर रात कहो तो रात कहेंगे…” टाइप वाली पत्रकारिता की चाहत ने ऐसा करवाया। अधिकारों और कर्तव्यों की पूरी जानकारी नहीं रखने वालों को पद और पॉवर मिलता है, तो इस तरह बौराना स्वाभाविक बात है। यह तो उस्तरे का गलत इस्तेमाल करने जैसी बात हो गई, जो पत्रकारों के गले पर चलाने की तैयारी थी। अब यह मामला तूल पकड़ने लगा है। पत्रकारों ने भी चिट्ठी लिखकर जवाब तलब किया है।
फर्जी जिओ टैगिंग की होड़
इन दिनों फर्जी जिओ टैगिंग वाली एक मैडम की चर्चा जोरों पर है। मैडम ने पीएम आवास का टारगेट पूरा करने की होड़ में मातहत कर्मचारियों पर इतना दबाव डाला कि पूरा मकान बने या न बने, एक तरफ की दीवार का प्लास्टर, चूना पुताई करवाकर फर्जी प्रोग्रेस की जिओ टैगिंग होने लगी। ठीक मुन्नाभाई एमबीबीएस की तर्ज पर। इतना ही नहीं, अब मातहत कर्मचारियों को बेवजह सस्पेंड करवाने का टारगेट पूरा करने की होड़ में भी आगे निकलती दिख रही हैं। अब कर्मचारी संगठन लामबंद होकर मैडम का ही बहिष्कार करने की तैयारी में है।
लंबा खिंच रहा इंतजार
दक्षिण बस्तर में आचार संहिता खत्म होने का इंतजार कुछ ज्यादा ही लंबा खिंचता जा रहा है। पहले चरण में मतदान से फारिग होने के बाद भी विकास का पहिया महाभ्रारत वाले महारथी कर्ण के रथ की तरह दलदल में फंसा हुआ है। इधर, इस बंधन की आड़ में अफसर-कर्मियों की मौज हो गई है। छुट्टी वाला माहौल बना हुआ है। पिछले 2-3 साल से सूखा झेल चुके लोग इस इंतजार में हैं कि कब आचार संहिता हटेगी और फाइलें खिसकेंगी। इसके पहले ठेकेदार, मटेरियल से लेकर मजदूर तक राजधानी से बुलवाए जाते रहे, इसके चलते स्थानीय मार्केट में ही मंदी छा गई थी।
बढ़त को लेकर जिज्ञासा..
लोकसभा चुनाव में परिणाम को लेकर भाजपाई और कांग्रेसी खेमे में बड़ी उत्सुकता है। सबसे बड़ी जिज्ञासा बढ़त को लेकर है। विधानसभा चुनाव में इस सीट पर जितना बड़ा गड्ढा हुआ था, वह गड्ढा पटेगा या खाई और बढ़ेगी। यह गड्ढा तब था, जबकि पिछले चुनाव में दोनों खेमों से जोर-शोर से प्रचार हुआ था और सारी ताकत झोंकी गई थी। विधानसभा चुनाव के मुकाबले इस बार हालात उल्टे रहे हैं, तो ऊंट किस करवट बैठेगा, यह समझना मुश्किल हैं। इस बात को लेकर अफवाह और सट्टे का बाजार भी गर्म है।
अफसर बनाम सत्ता पक्ष
हमेशा नौसिखिए अफसरों की प्रयोगशाला रहे दंतेवाड़ा जिले में लंबे समय से जमे एक अफसर को हटाने को लेकर सत्ता पक्ष के विधायक की चिट्ठी तक सीएम को पहुंच चुकी है, लेकिन आचार संहिता के कवच ने अफसर की रक्षा मजबूती से कर दी। अफसर की हरकतों से सिर्फ मातहत अफसर-कर्मी ही नहीं, बल्कि सत्ताधारी भाजपाई भी हलाकान हैं। अब देखना यह है कि आचार संहिता हटने के बाद उनकी सुनवाई होती है, या फिर कका सरकार के कार्यकाल की तरह उपेक्षा का दंश दंतेवाड़ा विधायक को झेलने की नौबत आती है।