मंडिया को समझ लिया हंडिया … शब्द बाण-29

साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम शब्द बाण (भाग-29)

✍️ शैलेन्द्र ठाकुर @ दंतेवाड़ा

शक्ति गारमेंट की लौटेगी शक्ति

खबर है कि दक्षिण बस्तर में डॉ रमन कार्यकाल में शुरू हुए शक्ति गारमेंट फैक्ट्री की शक्ति फिर से लौटाने की तैयारी की जा रही है। भूपेश कका के सिपहसालारों ने इस फैक्ट्री की मशीनें निकालकर नवा दंतेवाड़ा गारमेंट फैक्ट्री यानि डैनेक्स गारमेंट में तब्दील कर दिया था। इसके नाम से खूब वाहवाही और सुर्खियां बटोरी गई। अब सरकार बदल गई है, तो भला कैसे इसे जारी रखा जाता। खैर, इसी बहाने रमन सरकार के कार्यकाल के बीपीओ कॉल सेंटर, लाइवलीहुड कॉलेज समेत तमाम नवाचारों के दिन भी बहुरने की उम्मीद जाग उठी है, जिन्हें भूपेश कका ने हाशिए पर डाल कर गाय-गरू और गोठान तक सीमित कर दिया था।

 

मंडिया पेज को समझ लिया हंडिया

अर्थ का कैसे अनर्थ होता है, इसका अंदाजा दक्षिण बस्तर के इस वाकये से लगा सकते हैं। दरअसल लोकसभा चुनाव में दंतेवाड़ा के नजदीक एक आदर्श मतदान केंद्र को ट्रायबल कल्चर थीम पर सजाया गया था। इसमें आदिवासी संस्कृति की झलक दिखाने के साथ ही आगंतुकों व मतदाताओं को शीतल मंडिया पेज पिलाने की तैयारी थी, जो आम जन जीवन में लोकप्रिय तरल खाद्य है। लेकिन किसी ने आयोग के पास यह खबर पहुंचा दी कि इस बूथ पर कोई नशीला पेय परोसा जाने वाला है। इस पर अफसरों की भौंहें तन गई और आनन-फानन में मंडिया पेज का कार्यक्रम रद्द कर दिया गया। दरअसल, हुआ यह था कि सुरक्षा के लिए बाहर से आए जवानों ने मंडिया पेज को हंडिया (चावल से तैयार होने वाला नशीला पेय) समझ लिया।  इसी शक की बू आते ही जवानों ने अपने अफसरों को अलर्ट कर दिया।

नहीं मिली चुनावी चेपटी

इस बार लोक सभा चुनाव में मतदाता चुनावी चेपटी का इंतजार करते रह गए। विधानसभा चुनाव की तरह इस बार चेपटी नहीं बंट सकी। इसकी एक वजह चेक पोस्टों पर सघन चेकिंग तो थी ही, साथ ही दूर के उम्मीदवार होने की वजह से स्थानीय नेताओं की कम दिलचस्पी को भी इसके लिए जिम्मेदार माना जा रहा है। कांग्रेस ने भी सीटिंग एमपी की टिकट काटकर यहां के चर्चित सांसद प्रतिनिधियों को वोटरों के सेवा-सत्कार के अवसर से वंचित कर दिया।

कांग्रेस से ‘प्रतिभा पलायन’ जारी

कांग्रेस से भाजपा की ओर प्रतिभा पलायन का सिलसिला जारी है। कई ‘मोस्ट टैलेंटेड’ लोग कांग्रेस छोड़कर भाजपा ज्वाइन कर चुके हैं और कई इस कतार में हैं। पीसीसी चीफ तक इस पलायन को सत्ता का मोह बता चुके हैं। पलायन की वजह टैलेंट को अवसर नहीं मिलना है, या फिर अगले कुछ साल तक सत्ता के साथ रहने की चाह, ये तो वही जानें, लेकिन इतना तो तय है कि मौजूदा घटनाक्रम में भाजपा के पुराने और निष्ठावान कार्यकर्ताओं के माथे की शिकन बढ़ा दी है। वहीं दूसरी तरफ आने वाले समय में विपक्षी दल कांग्रेस में दबे-कुचले कई नए चेहरों को उभरने का मौका मिलने की उम्मीद जाग उठी है।

शांतिपूर्ण मतदान से मिली राहत

दक्षिण बस्तर में मतदान दलों की रवानगी से लेकर मतदान और इसके बाद सकुशल वापसी तक पुलिस व प्रशासन की चिंता बनी रही। हालिया मुठभेड़ों में तगड़ा नुकसान उठा चुके अंदर वाले दादाओं के प्रतिशोध की आशंका पहले जताई जा रही थी, लेकिन पुलिस कप्तान की कुशल रणनीति और प्रशासन के साथ बेहतर सामंजस्य से ऐसी कोई स्थिति निर्मित नहीं हुई। सब कुछ शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न होने से पुलिस व प्रशासन दोनों ने राहत की सांस ली।

आचार संहिता का मकड़जाल कब तक ?

पहले चरण में मतदान संपन्न होने के बाद दक्षिण बस्तर में आचार संहिता में ढील मिलने की उम्मीद जाग उठी है। लंबे ऊबाऊ चुनाव शेड्यूल के चलते लोग खासे भयभीत हैं। आचार संहिता के चलते सरकारी अफसर-कर्मी छुट्‌टी नहीं मिलने से परेशान हैं, और अपने नजदीकी रिश्तेदारों के शादी-ब्याह में शामिल नहीं हो पा रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ बैंकों में बड़ी नगदी निकासी, कैश लेकर चलने पर लगी पाबंदी से व्यापार व्यवसाय चौपट है। आम लोगों के लिए शादियों के सीजन में खरीदारी करना भी मुश्किल हो गया है। अब देखना यह है कि मतदान संपन्न हो चुके इलाकों में चुनाव आयोग अपनी पकड़ ढीली करता है या नहीं।

चलते-चलते…

जिले के एक मतदान केंद्र को खूब संवारा गया, जिसकी सराहना भी खूब हुई, लेकिन मतदान केंद्र तक पहुंचने वाली पीएमजीएसवाय सड़क 19 साल से अधूरी है, इस बात की तरफ किसी का  ध्यान नहीं गया। अधूरी सड़क के मुद्दे पर पिछले विधानसभा चुनाव के बहिष्कार की तैयारी कर रहे ग्रामीणों को ‘महोदय’ ने अंतिम समय में साम-दाम-दंड-भेद की नीति से शांत तो करवा दिया था, लेकिन समस्या जस की तस रह गई। जिला मुख्यालय वाले नगर की सरहद से लगे और दीया तले अंधेरा वाले इस गांव के ग्रामीणों की पीड़ा दुष्यंत कुमार जी की इन पंक्तियों से समझें…

यहां दरख्तों के साए में धूप लगती है..

चलो, यहां से चलें कहीं और, उम्र भर के लिए…

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