साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम शब्द बाण (भाग-28)
शैलेन्द्र ठाकुर @ दंतेवाड़ा
परलोक निमंत्रण का स्तंभ
बस्तर में दिवंगत परिजनों की याद में मृतक स्तंभ बनवाने की समृद्ध परंपरा रही है, लेकिन ‘महोदय’ ने दंतेवाड़ा के कारली में स्वागत द्वार के नाम पर एनएच के ठीक बीच में ऐसा खंभा बनवाना शुरू किया था, जो अब हादसों की वजह बनने लगा है। यानि यह जीते जागते लोगों को परलोक गमन का रास्ता दिखाने वाला साबित होने वाला है। एक कार की टक्कर के साथ ही इसकी बोहनी भी हो चुकी है। महोदय की विदाई के बाद स्वागत द्वार का काम तो बंद हो चुका है, लेकिन बीच सड़क पर खींसे निपोरे खड़ा यह खंभा हटेगा या नहीं, यह अभी तक तय नहीं हुआ है।
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महिला मोर्चा को नो एंट्री
भाजपा नेता व देश के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह की सभा में महिला मोर्चा को ही मंच पर एंट्री नहीं मिली। महिलाएं स्वागत के लिए मंच पर जाना चाहती थीं, मोर्चा की जिलाध्यक्ष तक मिन्नतें करती दिखीं, लेकिन सुरक्षाकर्मियों ने लिस्ट में नाम नहीं होने का हवाला देकर साफ मना कर दिया। अब लिस्ट किसने बनाई और फारवर्ड की, उस पर महिला मोर्चा का गुस्सा फूटना स्वाभाविक है। महिला आरक्षण की मजबूत पैरोकार पार्टी में ही महिला मोर्चा की नाराजगी क्या गुल खिलाएगी, यह तो वक्त ही बताएगा।
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बोतल में बंद हुआ जांच का जिन्न
दक्षिण बस्तर में ‘महोदय’ के कार्यकाल वाले गड़बड़ घोटालों की जांच का जिन्न बोतल से निकला ही था कि लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो गई। अगर जांच अंजाम तक पहुंचती, तो निर्माण से संबंधित तकनीकी विभाग के कई अफसरों का नपना तय था। सत्ता पक्ष से जुड़े लोगों का काफी दबाव भी बना था, लेकिन आचार संहिता अौर अफसरों की व्यस्तता की आड़ में मोर्चा लेते हुए संबंधितों ने कोहनी के बल चलते हुए यह मोर्चाबंदी तोड़ दी। साथ ही जांच वाले जिन्न को फिर से बोतल में बंद कर कसकर ढक्कन लगा दिया। अब देखना यह है कि लोकसभा चुनाव की आचार संहिता खत्म होने के बाद जिन्न फिर से बाहर आता है, या नहीं।
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ओपी का ग्लैमरस असर
सीएम बनते-बनते रह गए वित्त मंत्री ओपी चाैधरी का राजयोग भले ही प्रबल नहीं रहा हो, लेकिन दंतेवाड़ा आगमन पर भाजपाईयों ने जिस तरह उन्हें हाथों हाथ लिया, उससे उनके बढ़ते ग्लैमरस प्रभाव का अंदाजा लग गया। यूथ आइकन के तौर पर उभरे ओपी के साथ उम्रदराज और बुजुर्ग भी सेल्फी खिंचवाने में लगे रहे। मीटिंग और चुनाव जीतने से ज्यादा दिलचस्पी फोटो सेशन में दिखी। दंतेवाड़ा में कलेक्टरी के दौरान एजुकेशन सिटी, सरकारी कोचिंग सेंटर्स और लाइवलीहुड कॉलेज जैसे माइल स्टोन स्थापित करने वाले ओपी की यह लोकप्रियता लाजिमी है।
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सरकारी ढांचे पर ताड़ के पत्ते की छत
कमीशन की डीलिंग तय नहीं होने की वजह से ‘महोदय’ के कैशियर ने कई कामों को बीच में ही निरस्त करवा दिया था, जिनमें से पंडेवार के बकरी-मुर्गी शेड भी शामिल थे। यहां भी जोर-शोर से शेड निर्माण शुरू तो हुआ था, लेकिन कमीशन एक्सप्रेस पटरी से उतर गई। नतीजतन, ढांचा खड़ा करवाने के बाद छत ही नहीं डाली गई। अब हितग्राही उस पर ताड़ के पत्ते छाकर उसका उपयोग करने की तैयारी में हैं, ताकि ढांचे का सदुपयोग हो सके। वैसे, सरकार की इससे बड़ी बेइज्जती क्या होगी, जब पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप की तर्ज पर ढांचा सरकार का होगा और छत हितग्राही डालेंगे।
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डोर टू डोर स्टाइल
बस्तर टाइगर कर्मा के गढ़ दंतेवाड़ा में भाजपा के सांसद प्रत्याशी महेश कश्यप ने डोर-टू-डोर जनसंपर्क कर सबको चौंका दिया। आम तौर पर चुनाव प्रचार का शोरगुल थमने के बाद प्रत्याशी ऐसा करते हैं, लेकिन भाजपा उम्मीदवार ने मतदान से सप्ताह भर पहले ही यह फार्मूला अपना लिया। इसी बहाने आम जनता ने उम्मीदवार को प्रत्यक्ष देख भी लिया। दरअसल, यह खास स्टाइल बस्तर टाइगर कर्मा की थी, जो उनकी लोकप्रियता की एक वजह भी थी।
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पीएम आवास का दबाव
दक्षिण बस्तर में पीएम आवास योजना काे लेकर दबाव इतना ज्यादा है कि मैदानी कर्मचारियों को रात में भी वीसी के जरिए मीटिंग के लिए तैयार रहना पड़ता हैं। चुनाव से पहले टारगेट अचीव करने की हड़बड़ी में हितग्राहियों और कर्मचारियों के बीच संघर्ष तेज हो गया है। आवास बनाने में सुस्त हितग्राहियों के पीछे पड़े कर्मचारियों के साथ आए दिन कहा-सुनी होना आम बात है। कहीं कच्चे प्लास्टर पर चूना पोताई का दबाव है, तो कहीं हड़बड़ी में छत डालकर जियो टैगिंग का दबाव। इस दबाव से निपटने के लिए अधिकांश जगहों पर मैदानी अमला बगैर छत बने ही पूर्णता वाला जियो टैगिंग करने लगा है। अब ऐसे मकानों का भविष्य क्या होगा, यह तो समय ही बताएगा।
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सरकारी मयखाने में तालाबंदी
दक्षिण बस्तर में पहली बार ऐसा वाकया हुआ कि सरकारी मयखाना यानी शराब दुकान में प्रशासन ने ही ताला जड़ दिया। हालांकि तालाबंदी की यह स्थिति ज्यादा दिन तक नहीं रही। आखिर सरकार को सोने के अंडे देने वाली मुर्गी को कैसे हलाल किया जा सकता है। लेकिन मदिरा प्रेमियों और आम जनता के मन में यह सवाल दूसरा लड्डू की तरह अब तक फूट ही रहा है कि आखिर तालाबंदी की यह नौबत किस वजह से आई थी। कयास यह लगाए जा रहे हैं कि शराब दुकाने आसपास सैकड़ों वर्गमीटर एरिया में उग रही बोतलों की फसल की वजह से या फिर अप्रैल में रेट बढ़ने के बाद पुराने स्टॉक की नए सिरे से प्राइसिंग का मामला रहा होगा।