साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम शब्द बाण (भाग-27)
शैलेन्द्र ठाकुर @ दंतेवाड़ा
चुनावी सीजन में जो हो जाए, वो कम है। दंतेवाड़ा में चुनावी अभियान के तहत आए राज्य के एक कद्दावर मंत्री न सिर्फ नुक्कड़ तक पहुंचे, बल्कि चाय की एक दुकान में कार्यकर्ताओं के लिए खुद चाय उबालने का उपक्रम करते भी दिखे। मंत्री की बनाई चाय का स्वाद कैसा रहा, ये तो किसी कार्यकर्ता ने नहीं बताया, लेकिन चुनावी चाय उनमें कितनी जोश भर पायी है, ये तो मतदान और गिनती के बाद ही पता चल पाएगा।
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नया चुनावी लॉलीपॉप!
लोकसभा चुनाव में दक्षिण बस्तर यानि दंतेवाड़ा जिले से जुड़े मुद्दे गायब हैं। रेलवे ओवरब्रिज का मुद्दा हो, कानून की पढ़ाई शुरू करने का, या फिर शिक्षक और अन्य भर्तियों में स्थानीयता का मुद्दा, कोई भी उम्मीदवार रिस्क लेने को तैयार नहीं दिखता। भाजपा उम्मीदवार को मोदी के चेहरे का आसरा है, तो कांग्रेसी उम्मीदवार दादी को महिलाओं को एक लाख रुपए सालाना वाली लॉलीपॉप स्कीम का भरोसा है। वैसे महतारी वंदन योजना में नई-नई क्राइटेरिया जोड़कर ठगी गई महतारियों को इस लॉलीपॉप पर भी संदेह होने लगा है।
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तालाब को नए जीवन का इंतजार
चर्चित ‘महोदय’ के कार्यकाल में चितालंका तालाब को खोदकर जिस तरह से सुखाया गया था, उस रफ्तार से इसके सौंदर्यीकरण का काम दोबारा शुरू नहीं हो पाया है। भरी बरसात में तालाब का पानी उलीचकर खाली कराया गया और पांडवों की राजधानी इंद्रप्रस्थ की तरह रातों-रात माया महल जैसा स्ट्रक्चर बनाया जाने लगा। विवाद में घिरने के बाद काम बंद करना पड़ा। महीनों बाद काम शुरू तो हुआ, लेकिन अगले मानसून काल तक इसके पूरा होने की संभावना दूर-दूर तक नहीं दिख रही है।
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शादियों का रंग फीका किया चुनाव ने
लोकसभा चुनाव ने शादियों का रंग फीका कर दिया या शादियों में व्यस्तता ने चुनावी रंगत फीकी की, यह समझ नहीं आ रहा। समस्या यह है कि हिंदी पंचांग के मुताबिक शादियों के मुहूर्त इस बार अप्रैल महीने में ही हैं, इसके बाद शुक्र अस्त होने की वजह शुभ मुहूर्त नहीं हैं। इसके चलते ज्यादातर शादियां अप्रैल महीने में तय हो गई हैं। अब चुनावी माहौल में अधिकारी-कर्मचारी वर्ग छुट्टियां नहीं मिलने से परेशान तो है ही, शादी की जरूरी खरीदारी में कैश लेन-देन का रोड़ा भी सामने आ रहा है। बड़े निकासी पर बैंक और आयोग की नजरें गड़ी हुई हैं। लोग खासे परेशान हैं। वहीं, दूसरी तरफ शादियों में व्यस्तता के चलते राजनीतिक दलों से जुड़े लोग भी प्रचार अभियान में समय नहीं दे पा रहे हैं। अब चुनाव आयोग पंचांग देखकर तो कार्यक्रम तय नहीं करता है, लेकिन कम से कम शादियों के सीजन में चुनावी उत्सव का ध्यान रखा जाना चाहिए था।
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‘दादाओं’ की स्थिति
मार्च से मई महीने में आक्रामक रहकर फोर्स को बड़ा नुकसान पहुंचाने वाले ‘दादाओं’ पर उनका ही दांव इस बार उल्टा पड़ता दिख रहा है। इस सीजन की शुरुआत में ही फोर्स ने ताबड़तोड़ हमले कर दो दर्जन के करीब नक्सली मार गिराए हैं। पहली बार इतने बड़े पैमाने पर नुकसान उठाने से अंदर वाले ‘दादाओं’ की स्थिति खराब होती दिख रही है। इस मामले में दंतेवाड़ा की फोर्स की स्थिति उस बैट्समैन की तरह है, जो एक रन चुराकर नॉन स्ट्राइकर यानि पड़ोसी जिले की फोर्स को स्ट्राइक दे रहा हो और दूसरा ताबड़तोड़ चौके-छक्के लगा रहा हो।
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फसल बीमा का पता नहीं
चुनावी बुखार में तप रहे दक्षिण बस्तर में फसल बीमा की राशि किसानों को अब तक नहीं मिली है। जिले के अधिकांश हिस्सों में आनावारी रिपोर्ट में फसल नुकसान की पुष्टि तो हुई थी, लेकिन
बीमा कम्पनी पर सरकार की पकड़ ढीली होने का असर किसानों की जेब पर पड़ा है। नया खरीफ सीजन शुरू होने तक बीमा राशि नहीं बंट पाने का खामियाजा कहीं सत्ताधारी पार्टी को न भुगतना पड़े।
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सत्ता की ओर पलायन
चुनाव करीब आते ही कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामने का सिलसिला तेज हो गया है। सत्ता पक्ष की ओर पलायन कोई नई बात नहीं है। कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में भी ऐसे कई लोग झोला उठाकर भाजपा से चल दिए थे, लेकिन इस बार यह अनुपात और रफ्तार कई गुना ज्यादा है। इससे कट्टर और निष्ठावान पुराने लोग अपने भविष्य को लेकर आशंकित हो गए हैं।
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प्रकट हुए दक्षिणमुखी बजरंगबली
अंततः शक्तिपीठ परिसर में 51 फीट ऊंचे बजरंग बली हनुमानजी प्रकट हो ही गए। फाइनली रंग-रोगन का काम पूरा हो गया। नई प्रतिमा के निर्माण में राशि आबंटन से लेकर कई तरह की अड़चनें आईं। सबसे ज्यादा दिक्कत महोदय के कार्यकाल में रही। लेकिन भला संकटमोचन का रास्ता कोई रोक सकता है। पहले पूर्वाभिमुख रहे बजरंग बली इस बार दक्षिणमुखी हो गए हैं और इसका विशेष महत्व भी है।