साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम भाग-26
शैलेन्द्र ठाकुर @ दंतेवाड़ा
रेलवे ओवरब्रिज का मुद्दा गायब
विधानसभा के बाद अब लोकसभा चुनाव आ गया, लेकिन दंतेवाड़ा आरओबी यानि रेलवे ओवरब्रिज का मुद्दा गधे के सिर से सींग की तरह गायब है। दोनों ही प्रमुख पार्टियों के उम्मीदवारों का गृह जिला नहीं होने की वजह से यह आरओबी उनकी प्राथमिकता में नहीं है, लिहाजा, घोषणापत्र में इस आरओबी के मुद्दे काे जगह मिलने की संभावना कम दिख रही है। सरकारी तौर पर अंडरब्रिज के नाम पर झुनझुना पकड़ाने की कोशिश जारी है। लेकिन हर 5-10 मिनट में बंद होते रेल्वे फाटक से हलाकान आम जनता को राहत तो ओवरब्रिज से ही मिलेगी।
भाजपा में इनकमिंग और कांग्रेस में आऊटगोइंग
विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिली जीत के बाद दक्षिण बस्तर में कांग्रेसियों का पलायन तेज हो गया है। कई खांटी कांग्रेसी या तो भाजपा में प्रवेश कर चुके, या इसकी कतार में हैं। कुछ को तो पार्टी के लिए घातक मानते हुए टरकाया जा चुका है। कका के कार्यकाल में उपेक्षित महसूस कर रहे नेता-कार्यकर्ताओं की पीड़ा है कि उनकी कश्ती वहीं डूबी, जहां पानी कम था। मजेदार बात यह है कि भाजपा प्रवेश करने वालों में ज्यादातर कांग्रेसी ही हैं। पार्टी रणनीतिकार सीपीआई वाले कामरेड्स को नहीं तोड़ पा रहे हैं।
दादी की साफगोई
अपनी साफगोई के लिए मशहूर दादी कई बार गंभीर बातों को भी सहजता से कह देते हैं। दूसरी बार लोकसभा चुनाव लड़ने को लेकर उत्साहित दादी ने सार्वजनिक तौर पर कह दिया कि वे बेटे के लिए बहू मांगने गए थे, लेकिन पार्टी ने उन्हें ही पत्नी दिलवा दी। उनका इशारा लोकसभा चुनाव की टिकट को लेकर था। साथ ही खुद को देश का सबसे गरीब व्यक्ति भी बताने से नहीं चूके। आबकारी मंत्री रह चुके दादी की यह सादगी ही तो है कि 6 बार विधायक चुने जाने के बाद भी अमीरी से कोसों दूर हैं।
फागुन मेले में लगा जाम
फागुन मेले में मीना बाजार और दुकानों की जगह बदलने का साइड इफेक्ट आम लोगों और पुलिस को भुगतना पड़ा। महोदय की नाक का सवाल बन चुके जनविरोधी रेलिंग के प्रति कर्णधारों का मोह नहीं छूटा, जिसकी वजह से ज्यादातर दुकानें हाई स्कूल रोड पर लगी और वैकल्पिक रास्ता बंद होने की स्थिति में आ गया। बार-बार जाम लगने से लोग हलाकान रहे। एंबुलेंस और मरीज लेकर हास्पिटल जाने वाली गाड़ियों तक को रास्ता नहीं मिल पा रहा था। टस से मस नहीं होने वाले जाम से गुस्साए लोग ड्यूटी पर तैनात पुलिसकर्मियों पर बरसते दिखे।
निर्माण लागत से ज्यादा मरम्मत
पिछली सरकार के कार्यकाल में स्वामी आत्मानंद स्कूलों में भवनों के रिनोवेशन के नाम पर दंतेवाड़ा जिले में जमकर खेला हुआ। जितनी लागत में भवन बने थे, उससे ज्यादा लागत इन भवनों की मरम्मत पर आई। यह अजीबो-गरीब संयोग ही था या डीएमएफ मद को खाली करने का फंडा, इसे नई सरकार समझने में जुटी हुई है। यह भी देखने वाली बात है कि सबसे ज्यादा शत प्रतिशत हिंदी मीडियम हाई-हायर सेकेंड्री स्कूलों का उन्नयन करने की जिम्मेदारी सिर्फ इसी जिले ने किस वजह से ली थी। इन स्कूलों में न तो शिक्षक बढ़े, न ही दूसरे स्टाफ। सिर्फ रंगाई-पुताई और रिनोवेशन के नाम पर एपीसी कार्य करवाना ही लक्ष्य रह गया था। हां, बच्चों के गणवेश जरूर बदल दिए गए।
चुनावी चेपटी के इंतजार में सूखी होली
होली बीत गई और रंग पंचमी भी, लेकिन सुरा प्रेमियों को चुनावी चेपटी का कोई सहारा नहीं मिला। लोगों को सरकारी-गैर सरकारी ‘वेंडरों’ से खरीदकर अपना गला तर करना पड़ा। चुनाव आयोग की कड़ाई के चलते चेपटी परिवहन नहीं हो पा रहा है। वैसे, चुनावी समर में उतरने वाले उम्मीदवार भी इस मामले में काफी अनुभवी हो चुके हैं कि चुनावी चेपटी की वेलिडिटी सिर्फ कुछ घंटों की ही होती है। चुनावी सुरा का सुरूर उतरने के बाद कोई गारंटी नहीं रहती। इसीलिए वोटिंग के काफी पहले चेपटी बांटना मतलब संसाधन की बर्बादी ही होगी।
होली मिलन और आचार संहिता की आड़
चुनावी आचार संहिता ने राजनीतिक हस्तियों के होली मिलन समारोह का खर्च बचा दिया है। इसकी आड़ में ऐसे कार्यक्रमों के बगैर ही होली निपटा दी गई। धारा-144 और मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट लागू होने का रेडीमेड बहाना मिल गया। लोग कह भी नहीं पाए कि होली मिलन क्यों नहीं करवाया?
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