साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम (भाग-24)
शैलेन्द्र ठाकुर @ दंतेवाड़ा
मांई दंतेश्वरी के आंगन में विख्यात फागुन मेले की शुरूआत हो गई है और अंतत: वही हुआ, जिसका अंदेशा था। मेन रोड किनारे से विवादास्पद रेलिंग नहीं हटाई गई और रेलिंग वाले इस पिंजरे के भीतर मेला की दुकानें सज रही हैं। मेन रोड से मेले की रौनक गायब हो गई है। बड़ा सवाल यह है कि आखिर फागुन मेले को इस पिंजरे से मुक्ति कब मिलेगी?
दादी का दांव…
दादी के नाम से लोकप्रिय पूर्व मंत्री कवासी लखमा ने लोकसभा की टिकट ले ही ली। यह तो तय है कि दादी के पास खोने के लिए कुछ नहीं होगा। जीत गए तो एमपी बनेंगे, हार भी गए तो विधायकी जारी रहना ही है। इससे दादी ने एक तीर से कई निशान साधे हैं। दादी ने अपने धुर विरोधी पीसीसी अध्यक्ष की टिकट तो कटवा ही दी है, साथ ही कोंटा सीट पर जूनियर कवासी की ताजपोशी का रास्ता भी निकाल लिया है। अब दादी लोकसभा चुनाव जीत जाते हैं, तो यह अवश्यंभावी है कि कोंटा सीट पर उप चुनाव होगा और जूनियर कवासी यहां से उम्मीदवार। लेकिन यह भी हो सकता है कि बिल्ली के भाग्य से छींका छूटे और भाजपा को यहां अपना खाता खोलने का मौका मिले। दरअसल, हालिया विधानसभा चुनाव में दंतेवाड़ा और चित्रकोट सीट पर चीनी उंगली करने की आशंका कांग्रेसी उम्मीदवारों को थी, अंतत: सीट से हाथ धोना ही पड़ा था। सो जाहिर है कि खार खाए लोग दादी की मंशा को विफल करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेंगे।
डीईओ की कुर्सी बनाम सांप-सीढ़ी का खेल
दंतेवाड़ा में डीईओ की कुर्सी पर बैठना सांप-सीढ़ी का खेल खेलने जैसा ही है। बचते-बचाते अगर ऊपर पहुंच भी गए तो 99 के स्कोर पर ही कोई बड़ा फनकार चाभ कर नीचे आखिरी लाइन पर उतार देता है। पहले भी एक डीईओ को एंटी करप्शन ब्यूरो वाले कुर्सी से उतार चुके हैं और इस खेल में पर्दे के पीछे कुर्सी के दावेदारों की भूमिका चर्चित रही थी। आखिर इस कुर्सी के नीचे कौन सा कारूं का खजाना दबा है, यह तो उम्मीदवार ही जानें, पर ताजा किस्सा नए डीईओ की पोस्टिंग का है, जिसमें यह अजीब बात सामने आई है कि बिलासपुर से ट्रांसफर एमके अम्बस्ट का हुआ, और रिलीव एसके अम्बस्ट को कर दिया गया, ठीक रन फिल्म के कौआ बिरयानी वाले विजय राज की तरह, जिसका डॉयलाग “दर्द हुआ था सिर में और काट दिया पेट” काफी हिट हुआ था। दरअसल, डॉक्टर ने पेट काट कर किडनी जो निकाल लिया था।“ खैर, एसके अम्बस्ट ने वहां से छूटते ही यहां आकर ज्वाइन भी कर लिया। यह खबर भी निकलकर आ रही है कि स्टे लेकर आए पुराने डीईओ यथावत बने रहेंगे और विभाग के पास एसके और एमके की पहचान करने का झंझट नहीं रहेगा।
सड़क का ठेका
खबर है कि बचेली-दंतेवाड़ा सड़क निर्माण का ठेका फिर से पुराने ठेकेदार ने हासिल कर लिया है, जिसने 30 अप्रैल तक सड़क का काम पूरा करवाने का वर्क प्लान बनाकर पेश किया है। पिछली बार तो अच्छी खासी सड़क की चीर-फाड़ कर रायता फैला दिया था। हो सकता है कि इस बार कोई अलादीन का चिराग हासिल कर लिया हो, जो इतने कम समय में सड़क बनकर तैयार हो जाएगी।
नहीं फिरे क्षीरसागर व गौशाला के दिन
रमन सरकार के कार्यकाल में नवाचार के तौर पर शुरू हुए क्षीरसागर और गौशाला को भूपेश सरकार ने हाशिए पर डाल दिया था। गौमाताओं को चारा और कर्मचारियों को सैलरी के लाले पड़ने लगे। भूपेश सरकार का फोकस गोठानों पर रहा। फिर सरकार बदली तो क्षीरसागर और गौशाला के दिन फिरने की उम्मीदें जागी तो हैं, लेकिन ऐसा कब से हो पाएगा, यह अभी कहना मुश्किल है। वैसे अब गोठानों की उपेक्षा का दौर शुरू हो चुका है।
अब बोलो कितने विधायक..
कुछ महीने पहले तक दंतेवाड़ा सीट पर भाजपाई अक्सर 6-7 विधायक होने का तंज कसा करते थे, लेकिन वक्त बदला और सरकार के साथ ही दंतेवाड़ा सीट भी भाजपा के पाले में आ गई। अब कांग्रेसियों को अब भाजपाईयों के आरोप पर पलटवार करने का पूरा मौका मिल गया है। जिस तरह हास्पिटल से लेकर दीगर विभागों तक में पोस्टिंग और आपसी खींच-तान हो रही है, उससे इस बार अनगिनत विधायक सक्रिय होने का आरोप लगाने से कांग्रेसी नहीं चूकना चाहते हैं। फिलहाल, पहचान और गिनती जारी है।
होली हुई फीकी
लोक सभा चुनाव के चलते इस बार अफसर-कर्मियोंं की होली फीकी रहने की पूरी संभावना है। आचार संहिता लागू रहने से मुख्यालय नहीं छोड़ पाएंगे। परिवार से दूर होली मनानी पड़ेगी। वैसे, शादी-ब्याह पर भी चुनाव का साया पड़ता दिख रहा है। ज्यादातर विवाह मुहूर्त इस बार अप्रैल महीने में हैं। संयोग से चुनाव भी अप्रैल में ही है। अब सरकारी अफसर-कर्मी चुनाव निपटाएं या रिश्तेदारी निभाकर खुद निपटें, यह बड़ी उलझन है।