शैलेन्द्र ठाकुर @ दंतेवाड़ा
दंतेवाड़ा में जिला शिक्षा अधिकारी की सीट की स्थिति सिंहासन बत्तीसी के किस्से जैसी हो गई है। इस किस्से में राजा विक्रमादित्य के सिंहासन पर जैसे ही कोई राजा बैठता, एक-एक कर पुतलियां निकलकर किस्से-कहानियां बताने लगतीं थी। मजबूरन राजा को उठना पड़ता। 32 बार ऐसा हुआ। कुछ इसी तरह दंतेवाड़ा डीईओ चेम्बर में होता आ रहा है। पिछले चुनाव के ठीक पहले यहां पदस्थ किए गए अफसर ने ज्वाइनिंग तो दे दी, लेकिन पुराने को रिलीव ही नहीं किया गया। नतीजतन, महीनों तक नए अफसर को काम करने का मौका ही नहीं मिला। दोनों अफसर के मौजूद रहने से स्टॉफ भी परेशान रहा कि दोनों में से किसका हुक्म मानें। चुनाव निपटने के कुछ महीने बाद प्रभार मिला भी, तो लोकसभा चुनाव से पहले फिर सरकार ने दूसरे अफसर की पोस्टिंग यहां कर दी। अब देखना यह है कि चुनावी आचार संहिता लगने के बाद भी नए अफसर की ज्वाइनिंग होती है या नहीं।
रातों रात गायब हुई 10 फीसदी रेलिंग
महोदय के कार्यकाल की सबसे विवादास्पद रेलिंग को लेकर अजीब किस्सा सामने आया है। फागुन मंडई शुरू हो गई, लेकिन 36 लाख की यह रेलिंग नहीं हटी। बढ़ते दबाव और सरकार की किरकिरी होती देख अंततः रात के अंधेरे में रेलिंग का रेस्ट हाउस की तरफ वाला हिस्सा निकलवा दिया गया। यानी पुराने महोदय के दसवंद फॉर्मूले से रेलिंग का दस फीसदी हिस्सा हट गया है, लेकिन बाकी 90 फीसदी रेलिंग फागुन मेले की अस्थाई दुकानों पर ग्रहण बनी हुई है। बची हुई रेलिंग कब तक हटेगी, यह बताने की स्थिति में सत्ताधारी पार्टी नहीं रह गई है।
डीएवी स्कूलों में आत्मा का संचार कब?
डॉ रमन सरकार के कार्यकाल में खुले मुख्यमंत्री डीएवी मॉडल स्कूलों को भूपेश सरकार ने हाशिये पर डाल दिया था । इन स्कूलों के शिक्षकों को सैलरी तक के लाले पड़ गए थे। वैकल्पिक छात्रावास भी बंद कर दिए गए। अब सरकार बदलने के बाद इन स्कूलों के दिन फिर से बहुरने की उम्मीदें जागी तो हैं, लेकिन अब तक ऐसी कोई खास पहल होती नहीं दिख रही।
गंगा गए गंगादास…
सरकारें बदलती रहती हैं, और कुछ टैलेंटेड लोग गंगा गए गंगादास, जमुना गए जमुनादास की तर्ज पर इसके हिसाब से एडजस्ट होते रहते हैं। इसीलिए सरकार बदलने पर भी उनकी सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता। इसका अंदाजा दंतेवाड़ा में मंडल संयोजक नियुक्ति से लगाया जा सकता है। गीदम छोड़कर बाकी तीनों ब्लॉक के मंडल संयोजक बदल दिए गए। इसे लेकर विभाग में खुसुर-फुसुर जोरों पर है कि आखिर परिवर्तन की आंधी भी क्यों एक ब्लॉक छोड़कर निकल जाती है।
फिर पुतेगी कालिख!
आचार संहिता लागू होते ही सार्वजनिक स्थलों और दीवारों पर लगे माननीयों के चित्रों पर पुताई करने और खरोंचने का सिलसिला शुरू हो गया है। विधानसभा चुनाव से पहले भी ऐसा एक दौर आया था, जब आदेश मिलते ही हॉस्पिटल से लेकर तमाम जगहों पर लगी तस्वीरों को बुरी तरह खरोंचने और कालिख पोतने में अमला जुट गया था। ऐसा लग रहा था मानों कोई दुश्मनी भुना रहे हों। गनीमत यह रही कि सरकार रिपीट नहीं हुई। वरना, फिर से उन्हीं जगहों पर तस्वीरें लगाने की नौबत आ जाती।
एक का सरनेम, एक का नाम
बस्तर लोकसभा सीट पर भाजपा में टिकट के कई दावेदार उभरे, जिनमें से पार्टी रणनीतिकारों ने एक गज़ब का फार्मूला निकाल लिया। दो कद्दावर लोकप्रिय दावेदारों में से एक का नाम व दूसरे का सरनेम मिलाकर तीसरा नया उम्मीदवार मैदान में उतार दिया, जिसका जवाब कांग्रेस को अब तक नहीं मिल पाया है। आपसी खींचतान में उलझी कांग्रेस अपने उम्मीदवार का नाम तक घोषित नहीं कर सकी है। हालिया विधानसभा चुनाव में भी भाजपा ने उम्मीदवार घोषित करने के मामले में बढ़त हासिल कर ली थी, जिसके बाद मची हाय-तौबा और उठापटक का पता समय रहते चल गया और इस पर काबू भी पा लिया गया।
महोदय की लंबी छलांग
भूपेश कका के दुलारे रहे ‘महोदय’ को नई सरकार से भी उतना ही दुलार मिलने लगा है। माँ दंतेश्वरी कॉरीडोर विवाद समेत अन्य विवादों में घिरता देख नई सरकार ने भले ही फौरी तौर पर मंत्रालय अटैच कर दिया था, लेकिन कुछ ही सप्ताह के भीतर महोदय ने लूप लाइन से बाहर निकलने का जुगाड़ कर लिया। अब फिर से मलाईदार पोस्टिंग मिल गई है। मदिरा प्रेमियों से जुड़े विभाग यानी बेवरेज कॉर्पोरेशन में जाना भला कौन नहीं चाहेगा? इतना ही नहीं, महोदय ने अपने जाने के बाद वनवास काट रहे अपने चेले यानी छोटे महोदय को भी यहां से एयरलिफ्ट कर निकलवा लिया।