साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम ‘शब्द बाण’ भाग-24
शैलेन्द्र ठाकुर @दंतेवाड़ा
‘शिव ’के पर्व पर ‘विष्णु’ भारी
दंतेवाड़ा जिले में भगवान भोलेनाथ के पर्व महाशिवरात्रि के दिन ही सूबे के मुखिया विष्णु देव का प्रवास आयोजित होना कई लोगों के लिए परेशानी का सबब बन गया था। वीवीआई प्रवास की तैयारी में सुरक्षा कर्मियों से लेकर आयोजन से जुड़े अफसर-कर्मियों तक के लिए भगवान भोलेनाथ के दर्शन करना मुश्किल हो गया। दिन भर व्यस्तता के बीच घर से बार-बार कॉल आने से परेशान दिखे। भगवान महाकाल के साथ ही ‘निजी गृहमंत्री’ के कोप का भाजन बनने की आशंका बढ़ गई थी। महा शिवरात्रि और नवरात्रि की पंचमी जैसे मौकों पर वीवीआईपी प्रवास से ऐसी परेशानी होना कोई नई बात नहीं।
आंवराभाटा फाटक पर अटके सीएम
दंतेवाड़ा के आंवराभाटा में रेल्वे फाटक बंद होने पर किस तरह समस्या होती है, इसका प्रत्यक्ष अनुभव इस बार सीएम विष्णु देव साय और उनके सहयोगियों को हुआ। औसतन हर 5-10 मिनट में बंद होने वाले इस फाटक की त्रासदी को यहां की आम जनता कैसे झेलती है, इसकी पीड़ा तो उसे ही पता है। गनीमत यह रही कि केंद्र व राज्य में भाजपा की ही डबल इंजन सरकार है। इससे भाजपाईयों को केंद्र सरकार पर अकर्मण्यता का आरोप मढ़ने का मौका नहीं मिला। केंद्र के अंतरिम बजट में छत्तीसगढ़ के हिस्से में आए रेल्वे ओवरब्रिज मंजूरी की सूची में दंतेवाड़ा का नाम क्यों नदारद है, यह बताना खुद भाजपाइयों के लिए मुश्किल काम हो गया है।
नप गए बीआरसी, बीईओ मना रहे खैर
दंतेवाड़ा जिले में चारों ब्लॉक के बीआरसी नई सरकार में नप गए। पांच साल के कांग्रेसी कार्यकाल में सरकार के हिसाब से एडजस्ट हो चुके बीआरसी नई सरकार को खटक रहे थे। अब अपने हिसाब से नए-नए बीआरसी नियुक्त किए गए हैं। वहीं दूसरी तरफ अपने पदों से काेई छेड़खानी नहीं होने से सभी बीईओ खैर मना रहे हैं, लेकिन ऐसी चर्चा है कि जल्द ही बीईओ की भी नई सूची आने वाली है। अब यह आचार संहिता लगने से पहले आएगी, या फिर चुनाव के बाद, यह कहना फिलहाल कठिन है।
बंगले पर छिड़ी बहस, सामने चुनाव
दंतेवाड़ा में पुराने रेस्ट हाऊस को विधायक निवास बनाने को लेकर मचा बवाल थमता नजर नहीं आ रहा है। अब पूर्व विधायक देवती कर्मा ने कई आरोप लगाते हुए इस मामले में मोर्चा खोल दिया है। ऐन लोकसभा चुनाव के वक्त लगे गंभीर आरोपों का जवाब देना भाजपा के लिए मुश्किल भरा काम साबित हो सकता है। इस मामले में भाजपा संगठन के शीर्ष नेतृत्व की तरफ से अब तक कोई प्रतिक्रिया भले ही नहीं आई हो, लेकिन मामला ऐसा है कि न निगलते बन रहा है, और न ही उगलते बन रहा।
फिर निकला संलग्नीकरण का जिन्न
नई सरकार में एक बार फिर शिक्षकों के गैर शिक्षकीय कार्यो में संलग्नीकरण का जिन्न चिराग से बाहर निकल आया है। विभाग ने 7 दिन के भीतर संलग्नीकरण खत्म कर जानकारी देने का फरमान जारी तो किया है, लेकिन विभाग की स्थिति उस डॉक्टर की तरह हो गई है, जिसे मरीज के मर्ज की गंभीरता का तो पता है, लेकिन इलाज भी उसके पास नही है। कई साल से अफसरी और बाबूगिरी करते चाक और ब्लैकबोर्ड भूल चुके शिक्षकों को फिर से गुरू बनने के लिए प्रेरित करना इतना आसान काम नहीं है। जितने आश्रम-छात्रावास में अधीक्षकों की जिम्मेदारी शिक्षक संभाल रहे हैं, उतने अधीक्षकों की भर्ती अब तक नहीं हुई, फिर नए अधीक्षक कहां से लाएंगे। ऐसा ही हाल बाबू और अफसरों के पदों का है। संलग्नीकरण से हटाकर फिर किसी न किसी शिक्षक को लाना विभाग की मजबूरी रहेगी ही।
स्कूलों पर चूना लगाना भारी पड़ रहा
जिले में स्कूल जतन योजना के नाम से पुराने महोदय के कार्यकाल में जितना चूना स्कूल भवनों को लगाया गया था, उसकी पोल अब खुल रही है। मरम्मत के नाम पर सिर्फ चूना पुताई कर आहरण की पूरी तैयारी थी। कुछ जगहों पर हो भी चुकी थी, लेकिन सरकार और अफसर बदलते ही जांच शुरू हो गई है। जितना काम, उतना ही भुगतान वाली पॉलिसी अपनाने से ठेकेदारों के होश उड़ गए हैं। खबर है कि योजना की राशि अब शिक्षा विभाग को लौटाई जा रही है। कम से कम अब नौनिहालों को बरसते पानी में जर्जर भवनों में बैठकर पढ़ाई करने की मजबूरी नहीं होगी।
रेलिंग से हो रही किरकिरी
फागुन मेला शुरू होने से पहले दंतेवाड़ा की विवादास्पद रेलिंग हटाने का मामला अब तक नहीं सुलझ पाया है। इस रेलिंग को हटाने का ऐलान कर चुके भाजपाई नेताओं की स्थिति हरेक जनधन खाते में 15 लाख रूपए जमा करने वाली घोषणा जैसी हो गई है। ‘महोदय’ और प्रशासन की नाक का सवाल बन चुकी इस रेलिंग के विरोध में आए लोगों को फर्जी मामलों में लपेटा गया था, इतने बवाल के बाद नई सरकार से लोगों की उम्मीदें जागी थी, लेकिन इन सरकार गठन के 3 माह बीतने के बाद भी यह अपनी जगह पर तनी हुई है।