साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम शब्द बाण ( भाग-23)
–शैलेन्द्र ठाकुर @दंतेवाड़ा
फरियादी पर ही सबूत का भार
दक्षिण बस्तर की पुलिसिंग सिर्फ नक्सल उन्मूलन तक ही सीमित रह गई है। अपराध की विवेचना का बेसिक फंडा सीखने के लिए विवेचकों को मौका नहीं मिल पा रहा है। आलम यह है कि हर अपराध को नक्सलवाद के चश्मे से देखने की आदत पड़ रही है। जिले के एक थाना क्षेत्र में बोरवेल की चोरी की रपट लिखाना फरियादियों को ही भारी पड़ गया। महीनों बीत गए चोर का पता नहीं लगाया जा सका, उल्टे फरियादियों की आए दिन थाने में पेशी करवाई जा रही है। कभी ये दस्तावेज लाओ, तो कभी वो फोटो खींचकर लाओ। अब फरियादी भी परेशान हैं कि इससे अच्छा तो यह था, रपट ही नहीं लिखवाई जाती।
एसबीआई की बदइंतजामी..
सबसे बड़े राष्ट्रीयकृत बैंक एसबीआई में ग्राहकों की परेशानी कम होती नहीं दिखती है। इस बैंक में कर्मचारियों के रूखे व्यवहार और आए दिन काउंटर बदलने को लेकर कई सारे जोक और मीम्स भी बनते रहते हैं। बैंक में भीड़ कम करने की गरज से यहां पर खातेदारों को नगदी जमा करने से मना किया जाता है। इसके लिए नजदीकी कियोस्क सेंटर पर जाकर जमा करने को कहा जाता है, लेकिन बैंक अफसरों के नखरे से परेशान दो ग्राहक सेवा केंद्र पहले ही काम करना बंद कर चुके हैं। ऊपर से बैंक के सामने लगी इकलौती कैश डिपॉजिटर मशीन भी अक्सर बंद पड़ी रहती है। जिन्हें अपने खाते में कैश जमा करना हो, उन्हें मजबूरन मोटी कमीशन राशि देकर दूसरे जरियों से पैसे जमा करवाने पड़ते हैं।
पूरे घर को बदल डाला
दंतेवाड़ा जिले में पदस्थ प्रशासनिक अफसरों का तबादला थोक भाव में हो गया। पूरे घर के बल्ब की तरह अफसर बदले गए। जिनके खिलाफ बड़ी शिकायतें और नाराजगी है, उनका तबादला तो नहीं हुआ, लेकिन चुनाव के नाम पर दूसरे काबिल अफसर यहां से रूखसत होते चले जा रहे हैं। पटाखे फोड़कर विवादित कलेक्टर को विदाई देकर सुर्खियों में आए इस जिले में पिछले कुछ सालों से ऐसा ही अजब-गजब खेल चल रहा है।
दारू दुकान में अधिकारों की दुहाई..!!
दक्षिण बस्तर में ऐन-केन प्रकारेण विभिन्न अधिकारों के पैरोकार हल्ला मचाते रहे हैं। कभी पुलिस ज्यादती को लेकर, तो कभी कुछ। बाद में मामला ठंडा पड़ जाता है। वहीं दूसरी तरफ मदिरा प्रेमियों की मानें तो उनकी पीड़ा भी इसी तरह के अधिकारों के हनन से कमतर नहीं है, लेकिन उनकी बात सुनने वाला कोई नहीं है। आखिर कोरोना काल जैसे हालात में भी अर्थव्यवस्था को संभालने की जो महती जिम्मेदारी निभाई थी, जिसका यह सिला कोरोना वारियर्स काे मिल रहा है। कभी पसंद की ब्रांड नहीं मिलती, तो कभी मनमाने रेट वसूले जा रहे हैं। सरकार बदलने के बाद भी उनकी पीड़ा कम नहीं हो रही।
भाजपा की टिकट और कहीं खुशी, कहीं गम
लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा की सूची जारी होने के बाद से ओजस्वी मंडावी के समर्थकों की तमाम उम्मीदों पर पानी फिर गया और गहरी मायूसी छा गई है। पिछले लोकसभा चुनाव में अपने क्षेत्र से भाजपा को अच्छी लीड दिलाने के लिए प्रयास करने के दौरान तत्कालीन विधायक भीमा मंडावी को नक्सली हमले में जान गंवानी पड़ी थी। उनकी पत्नी ओजस्वी को विधानसभा न सही, कम से कम लोकसभा सांसद बनवाने की आस समर्थकों को थी। हालांकि अंदरूनी कलह और असंतोष से जूझ रही पार्टी के एक धड़े के मन की मुराद पूरी हो गई, जो नहीं चाहता था कि जिले में पावर सेंटर का बंटवारा हो जाए। यानि एक ही जिले में विधायक और सांसद होने पर डीएमएफ समेत अन्य मुद्दों पर खींचतान की गुंजाईश बनी रहती। अब यह स्थिति तो नहीं रहेगी, साथ ही चुनाव में क्षेत्र से ज्यादा से ज्यादा वोट दिलवाने की मजबूरी भी नहीं होगी।
और .. जमीन हो गई गायब !!
राजस्व विभाग के कुछ होेनहार कर्मचारियों की तिकड़म से आम लोग हमेशा परेशान रहते हैं, लेकिन इस बार विभाग के ही सेवानिवृत्त बाबू को इसकी पीड़ा का एहसास हुआ है। बेचारे की 6 डिसमिल जमीन गायब हो गई है। ज़मीन को जमीन खा गई या आसमां निगल गया? बड़ी मुश्किल से पता लगाया गया। रिटायर्ड बाबू के होश यह जानकर फाख्ता हो गए कि उनकी जमीन को दूसरे खाते में मिलाकर किसी तीसरे को बिकवा दी गई है। अब अगर मामले की तह तक जाकर अच्छी तरह नाप-जोख हो जाए, तो तगड़े राजनीतिक और प्रशासनिक रसूख वाले एक चर्चित पटवारी समेत कई लोग नप सकते हैं।
अपना-अपना विपक्षी धर्म
बैलाडीला-दंतेवाड़ा सड़क को लेकर मचा घमासान थमने का नाम नहीं ले रहा है। सत्ताधारी भाजपा और विपक्षी कांग्रेस के बीच आरोप-प्रत्यारोप जारी है। महिला कांग्रेस ने तो सातधार तिराहे पर चक्काजाम कर अपना विपक्षी धर्म भी निभा दिया, जिस पर सत्ताधारी भाजपाईयों का तर्क है कि सड़क निर्माण की शुरूआत तो कांग्रेस कार्यकाल में हुई थी, तब क्यों ध्यान नहीं दिया गया। वैसे इस जिले में ‘महोदय’ की दादागिरी वाले कार्यकाल में भाजपा ने जिस तरह प्रशासन के कंधे से कंधा मिलाकर ‘विपक्षी धर्म’ निभाया था, वह भी किसी से छिपा नहीं है। खासकर जन विरोधी ‘रेलिंग’ वाला मामला सबके सामने है।