साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम (शब्द बाण-19)
शैलेन्द्र ठाकुर @ दंतेवाड़ा
भूपेश सरकार आते ही हेल्थ मिनिस्टर टीएस बाबा ने जिला हॉस्पिटल दंतेवाड़ा को 100 से बढ़ाकर 200 बिस्तर में उन्नयन करने की घोषणा तो कर दी, लेकिन ढाई-ढाई साल वाले फॉर्मूले की लड़ाई में खार खाए कका भला कहां उनकी चलने देते? कका ने अपने ही हेल्थ मिनिस्टर की घोषणा पर अमल नहीं किया। नतीजा यह हुआ कि 5 साल बाद भी जिला हॉस्पिटल 100 बिस्तर के सेटअप पर ही लंगड़ाते, घिसटते हुए चल रहा है। क्षमता से ढाई-तीन गुना ज्यादा मरीज भर्ती कर इलाज जारी है। अब राज्य में सरकार बदल चुकी है, लेकिन हॉस्पिटल की सेहत और स्टाफ की कमी की समस्या में कोई सुधार नहीं हुआ है।
नई सरकार में बेघर हुए अतिथि
राजधानी में रेस्ट हाउस में विधायकों को ठहराने का चलन अब दंतेवाड़ा तक पहुंच गया है। खबर है कि पुराना रेस्ट हाउस को विधायक बंगला में कन्वर्ट किया जाएगा। इसकी तैयारी भी चल रही है। हमेशा हाउसफुल रहने वाले सर्किट हाउस के विकल्प के तौर पर यही पुराना रेस्ट हाउस मेहमानों के रुकने के लिए काम आता था। अब यह भी लोगों से छिनता दिख रहा है। वैसे तो, दंतेवाड़ा के लैंडमार्क के तौर पर भी इस पुराने रेस्ट हाउस की पहचान थी, अब सबका पता बताने वाले गूगल बाबा भी आने वाले समय में कंफ्यूज होंगे।
कब हटेगी रेलिंग?
धार्मिक नगरी दंतेवाड़ा की विवादास्पद रेलिंग हटने का इंतजार लोग कर रहे हैं, लेकिन रेलिंग कब हटेगी, इसका पता नहीं है। इधर फागुन मेला शुरू होने में डेढ़ माह का समय ही बचा है। चबूतरा खाली नहीं हुआ, तो दुकानें कहां सजेंगी, इसका जवाब किसी के पास नहीं है।
पुराने ‘महोदय’ ने अपनी नाक का सवाल मानते हुए धर्मशाला से बस स्टैंड और इसके आगे रेस्ट हाउस तक रेलिंग तानकर ही दम लिया था। इसका जिसने भी विरोध किया, उसे अपने सरकारी ‘मुखबिरों’ के दम पर साम-दाम-दंड-भेद से नेस्तनाबूत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मजेदार बात यह है कि नव निर्वाचित विधायक इस रेलिंग को हटवाने की घोषणा कर चुके हैं, लेकिन इस पर अमल होगा भी या नहीं, यह भविष्य के गर्भ में है।
चूना लगा गए अफसर
दंतेवाड़ा जिले में जो हो जाए और जितना हो जाए वो कम है। यहाँ स्कूलों की मरम्मत करने और अंत में चूना पुताई करने के नाम पर करोड़ों रुपए का फंड बीते सत्र में आया था। लेकिन अफसर भी कहां पीछे रहने वाले थे। मरम्मत की जगह डायरेक्ट चूना पुताई कर सारी राशि का आहरण कर लिया। पोल न खुल जाए, इस डर से ठेकेदार से लेकर मजदूर तक बाहर से बुलाए गए थे। अब अगले मानसून सीजन में ही पता चल सकेगा कि किस स्कूल की मरम्मत कितनी गंभीरता से हुई थी।
धृतराष्ट्र वाला आलिंगन
जिला हॉस्पिटल में कॉक्रोच-चूहों के आतंक की खबर मीडिया में आई तो बवाल मच गया। हॉस्पिटल के बड़े साहब से लेकर स्टाफ तक कॉक्रोच और चूहों को मारने में जुट गए। ऊपर से कई जरूरी लैब टेस्ट भी केमिकल के अभाव में बंद पड़े होने की खबर वायरल हुई। खूब किरकिरी होने से हॉस्पिटल के बड़े साहब मीडिया से खार खाए बैठे हैं। महाभारत युध्द में अपने पुत्रों को खोने के बाद धृतराष्ट्र ने जिस तरह भीम को आलिंगन में जकड़कर खत्म करने की कोशिश की थी,
ठीक उसी तरह साहब भी मीडिया को देखते ही आपे से बाहर होने लगे हैं। कॉक्रोच-चूहों से निपटने की बजाय पत्रकारों को हॉस्पिटल से बाहर रखने को कह रहे हैं। एप्रोच के बल पर मिले पॉवर का ऐसा इस्तेमाल पहली बार इस हॉस्पिटल में दिखाई पड़ रहा है।
आत्मानंद स्कूलों का हाल
कका सरकार में जिले के शत-प्रतिशत हिंदी मीडियम हाई व हायर सेकेंडरी स्कूलों को आत्मानंद स्कूलों में कन्वर्ट करने का ऐलान हुआ था। लोगों में उत्सुकता बढ़ी कि स्कूलों के इंफ्रास्ट्रक्चर से लेकर स्टाफ संख्या में बदलाव होगा, लेकिन स्कूलों के रेनोवेशन के नाम पर अनाप-शनाप खर्च से ज्यादा कुछ भी नहीं हुआ। भवन की हालत में सुधार भले ही न हुआ हो, सामने बाउंड्रीवाल पर एसीपी वाले चमचमाते गेट जरूर लग गए हैं। हिंदी मीडियम स्कूलों में जरूरत के पद खाली पड़े हैं।
बदलाव की बयार
अंततः दंतेवाड़ा जिले में भी शिक्षा विभाग ने संकुल समन्वयकों को बदल डाला है। लेकिन बदलाव की स्थिति से यह समझ नहीं आ रहा है कि सत्ता पक्ष की पसंद से लिस्ट जारी हुई है या विपक्ष के हिसाब से। पुराने तेज तर्रार टाइप के कई लोग कुर्सी बचाने में कामयाब रह गए और कुछ बेवजह निपटा दिए गए।