कहीं का रोड़ा, कहीं का पत्थर (शब्द बाण -15)

 

(साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम भाग-15)

शैलेन्द्र ठाकुर /दंतेवाड़ा

कहीं का रोड़ा, कहीं का पत्थर…

दंतेवाड़ा में कहानी ऐसी रही कि कहीं पुरानी बिल्डिंग की दीवारों को छीलकर, तो कहीं 2-4 नए कॉलम खड़े कर एक नई चमचमाती बिल्डिंग का कॉकटेल तैयार कर दिया और बिलिंग सिर से पांव तक के खर्च की हो गई। कहीं बाउंड्रीवाल पर मटमैला टाइल चिपका कर चिकना कर दिया, तो कहीं स्वागत द्वार के बने बनाए ढांचे पर नई परत चढ़ाकर खर्च वसूल लिया।
सबसे बड़ा खेला तो आत्मानंद हिंदी मीडियम स्कूलों में हुआ। छत्तीसगढ़ के सर्वाधिक आत्मानंद स्कूल कन्वर्ट करने का ठेका इसी जिले को मिला। इसकी आड़ में करोड़ों का खेला हो गया। नई आत्मा का पुरानी काया में ‘पर काया’ प्रवेश तो नहीं हुआ, सिर्फ केंचुली उतारकर फेंक दी गई। न स्टाफ बढ़े,न सुविधाएं। बच्चों के यूनीफार्म और स्कूलों के रंग-रोगन को छोड़कर कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ा। जिले का पूरा माजरा अंग्रेजी साहित्यकार टीएस इलियट पर प्रचलित पंक्तियों की याद दिलाता है-

कहीं का रोड़ा, कहीं का पत्थर
टीएस इलियट ने जैसे दे मारा हो।”

अब खबर है कि नई भाजपा सरकार आत्मानंद स्कूलों को विवेकानंद में कन्वर्ट करने वाली है। पता नहीं, आगे क्या होगा।

महोदय शब्द का रिटायरमेंट..

दक्षिण बस्तर में ‘महोदय’ शब्द इतना चर्चित हो गया है कि यहां अब कोई भी खुद को महोदय बुलवाना नहीं चाहता। नेता तक इस शब्द से दूर भाग रहे हैं। इसकी जगह कोई दूसरा शब्द उपयोग में लाने का आग्रह करते दिखते हैं। क्रिकेट में जिस तरह मास्टर ब्लास्टर सचिन की ’10 नंबर’ जर्सी टीम इंडिया से हमेशा के लिए रिटायर कर दी गई, ठीक उसी तरह महोदय शब्द भी दंतेवाड़ा से रिटायर होता दिख रहा है।

कुछ जोड़ी आंखें छोड़ गए महोदय

थर्ड अंपायर और डीआरएस कॉल के नतीजे का इंतजार कर रहे बल्लेबाज की तरह महोदय अंततः बड़े ही अनमने ढंग से बल्ला टांगकर रवाना हुए। लेकिन, जाते-जाते भी दंतेवाड़ा में आहरण, भुगतान और जांच पर अपने पीठ पीछे नजर रखने कुछ जोड़ी आंखें छोड़ कर गए। इनमें से एक जनपद की सीईओगीरी करने वाले “छोटे महोदय” की भी एक जोड़ी आंखें शामिल हैं। वैसे भी पहले यहां महोदय की 5 हजार खुफिया आंखें होने के किस्से प्रचलित थे, जिनकी निगहबानी की दहशत ऐसी थी कि लोग पान ठेला, खोमचा के सामने खड़े होकर भी इधर-उधर देखकर ही बातें करते थे। अब राहत मिली भी है, तो लोगों को यकीन नहीं हो पा रहा है।

किसी ने क्या खूब कहा है-
किससे करें शिकायत.. किसपे करें ऐतबार हम,
जिसे भी अपना समझते हैं, वही बेगाना निकलता है।

 

दशवंद का चस्का

दशवंद वाले बाबा की विदाई के बाद भी सिपहसालार अपनी-अपनी कुर्सी पर जमे हुए हैं। दशवंद यानी कुल मंजूरी का 10 फीसदी वसूलने का जो चस्का चढ़ा गए, उसके वायरस को पूरी तरह हटाने के लिए सिस्टम को फॉर्मेट करने और एंटी वायरस चलाने की जरूरत है। चेले-चपाटी फिलहाल नए आए तेज तर्रार साहब का मूड भांपने और उनके हिसाब से एडजस्ट होने की कोशिश में लगे हैं। देखना यह है कि दशवंद वसूली गैंग वाला वायरस पूरी तरह डी-बग होता है या फिर आगे भी सिस्टम को हैंग करता रहेगा।

ये लाल रंग कब मुझे छोड़ेगा…

दंतेवाड़ा जिले में अधिकतर सरकारी भवनों, बाउंड्रीवाल को लाल से मिलते- जुलते मटमैले रंग से रंग दिया गया है। इसकी बिलिंग किस दर से हुई या किस मद से भुगतान हुआ, इसकी जानकारी कम ही लोगों को है,लेकिन महोदय की पसंद के इस रंग को लेकर रार ठनी हुई है। यहां तक कि जिला पंचायत की सामान्य सभा मे भी यह विषय उछला। अब यह तय हुआ कि मटमैले लाल रंग से पीछा छुड़ाया जाए और फिर से पुराने रंग में रंगा जाए।

सरकार बदलने से फिरे जावंगा के दिन

राज्य में बीजेपी की सत्ता में वापसी से दंतेवाड़ा जिले की एजुकेशन सिटी जावंगा के दिन फिरते नजर आ रहे हैं। फिर से आए दिन भ्रमण और अध्ययन दौरे शुरू हो गए हैं। इसके पहले भूपेश सरकार ने 5 साल तक इसे हाशिए पर डाल दिया था। भवनों की रंगाई-पुताई से लेकर बच्चों के निवाले तक के लाले पड़ने लगे थे। संयोग से इस बार वित्त विभाग जैसे दमदार पोर्टफोलियो के साथ वही ओपी चौधरी मंत्री बन चुके हैं, जो पूर्व में दंतेवाड़ा कलेक्टर रहते इस एजुकेशन सिटी के निर्माण के मुख्य सूत्रधार रहे हैं।

कर्ज माफी की उम्मीद अब भी…

धान खरीदी सीजन खत्म होने में ज्यादा दिन बाकी नहीं रह गए हैं, लेकिन किसानों में यह उम्मीद अब भी बाकी है कि राज्य की सत्ता पर काबिज हुई बीजेपी कर्ज माफ कर देगी। बेचे गए धान की कीमत कहीं कर्ज में न कट जाए, इस चिंता में किसान धान बेचने में देर कर रहे हैं।

लेकिन असल दिक्कत यह है कि.कांग्रेस ने तो कर्ज माफी को अपने चुनाव घोषणा पत्र में शामिल किया था, लेकिन कुछ उत्साही भाजपा नेताओं मंचीय घोषणाओं में ही कर्ज माफी की बात कह डाली थी, पार्टी ने अधिकृत तौर पर कुछ नहीं कहा था। इस तकनीकी पेंच का फायदा बीजेपी सरकार को मिल गया। बहरहाल, किसानों की स्थिति कुछ यूं है-
हर शब जलाए रखता हूँ, दहलीज़ पे चिराग़।
कि लौट के आओगे, उम्मीद अब भी बाकी है।।”

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