शैलेन्द्र ठाकुर / दंतेवाड़ा
बड़े बे-आबरू होकर निकले…
सुकमा से धकियाकर निकाले गए ‘महोदय’ की दंतेवाड़ा से भी कुछ वैसी ही विदाई हुई। पूरे लाव-लश्कर के साथ मिलकर जिले के लोगों की छाती पर जिस तरह मूंग दला गया, उससे मातहत अधिकारी-कर्मचारी, व्यापारी, पंच-सरपंच, ठेकेदार, ठेला-गुमटी संचालक, व्यापारी से लेकर तमाम लोग हलाकान रहे। लेकिन सरकार बदलने के बाद आम लोगों के दिन फिर गए। अपनी छवि को चमकाने पेड प्रमोशन करवाने का फंडा भी काम नहीं आया। कका के दुलारे ने अंतिम समय तक हार नहीं मानी। सरकार बदलने के बाद भाजपाई ठेकेदारों के चेक बुला-बुलाकर काटे। कुछ के सुर बदले भी।
लेकिन अंततः “विष्णु देव” ने पीड़ित मानवता की गुहार सुन ली। आधी रात ट्रांसफर लिस्ट आई तो फिर जनता की खुशी का कोई पैमाना ही नहीं रहा। साहब को मंत्रालय अटैच कर लूप लाइन में डाल दिया गया। किसी बड़े साहब के तबादले पर चौक-चौराहों में पटाखे फूटने का नजारा पहली बार दंतेवाड़ा में दिखा। दफ्तर की बजाय बंगले में चार्ज देने की नौबत आ गई। फेयरवेल पार्टी तक नहीं मिल सकी।
‘बड़े बे-आबरू होकर तेरे कूचे से निकले हम’ वाली स्थिति पहली बार यहां दिखी।
हैंडपम्प की जगह एटीएम उखाड़ा महोदय ने
गदर फ़िल्म में सनी पाजी ने हैंडपंप उखाड़ा था। इस फ़िल्म के सीक्वल यानी गदर-2 में भी सनी पाजी का हैंडपंप उखाड़ने वाला सीन दोहराया गया था। आम जीवन में भी ज्यादातर चीजें फिल्मों से प्रभावित रहती हैं। अब दंतेवाड़ा में हैंडपंप तो मिला नहीं, महोदय ने कोतवाली के सामने यात्री प्रतीक्षालय और एसबीआई का एटीएम ही उखड़वा दिया। अब लोग एटीएम खोजते फिर रहे हैं।
सवा नहीं, साढ़े 3 लाख का हाथी
‘मरा हुआ हाथी भी सवा लाख का’ होता है, यह कहावत तो आपने सुनी ही होगी। लेकिन डीएमएफ का हाथी सवा 3 लाख का होता है, यह आप पहली बार सुन रहे होंगे। यकीन न हो तो कभी गीदम-बारसूर रोड पर हो आइए। बारसूर में पहले से बने बनाए स्वागत द्वार पर 60 लाख के टाइल्स चिपकाए गए हैं, जिसमें पत्थर के हाथी के नक्काशीदार 4 छोटे-छोटे सिर लगाए गए हैं और हरेक सिर की कीमत बिल में 3.20 लाख रखी गई है। यानी नई कहावत में सवा लाख की जगह सवा 3 लाख का जिक्र होना लाजिमी है। जब कहावत बनी थी, तब जीएसटी और कमीशन का प्रावधान नहीं हुआ करता था।
खाली कर गए खजाना
दंतेवाड़ा जिले में महोदय ने डीएमएफ-सीएसआर पर ऐसी कुंडली मारी कि ग्राम पंचायतों से लेकर स्वास्थ्य, शिक्षा, पेयजल जैसे जरूरी विषयों पर राशि के लिए लोग तरसते रह गए। करोड़ों के बड़े-बड़े प्रोजेक्ट बनाकर टुकड़ों में काम करवाए गए। बाहर से अपने साथ सीमेंट-लोहा से लेकर मजदूर तक लेकर आने वाले ठेकेदारों ने जिले के व्यापार व्यवसाय तक को मंदा कर दिया। काम पूरा हो न हो, लेकिन 40 फीसदी राशि का आहरण लगभग हरेक प्रोजेक्ट में हो चुका। अब उत्तराधिकारी के पास बची 60 फीसदी राशि का वितरण करने के अलावा कोई खास काम नहीं बचा रहेगा। खबर है कि तबादले के बाद भी महोदय घर से ही फाइलों को निपटाते रहे।
यानी
“कब्र पे मेरी सिर झुकाकर चल दिए
दीये में जितना तेल था, सिर में लगाकर चल दिये।”
अब समधी की बारी…
महोदय की विदाई के बाद अब समधी यानी छोटे महोदय की तरफ विरोधियों की तोप का मुंह घूम गया है। नेता से लेकर ठेकेदार तक खार खाए बैठे हैं। महोदय के कैशियर और राइटहैंड के तौर पर फुल फॉर्म में रहे छोटे महोदय के कारनामे काफी चर्चित रहे हैं। खबर है कि अब तबादले पर जिले से बाहर उड़ जाने के लिए पूरा जोर लगाया जा रहा है। यही स्थिति गलत ढंग से आरक्षण लेने के विवाद में उलझने के बावजूद पावरफुल पद पर बैठाए गए एक मुंह लगे अफसर की भी है।
अनुभवों की पाठशाला रहा 2023
बीता साल दक्षिण बस्तर के लिए उथल-पुथल वाला समय रहा। प्रशासन और सत्ता पक्ष के ही जन प्रतिनिधियों के बीच नूरा कुश्ती चलती रही। प्रशासन ने ऐसी धोबी पछाड़ लगाई कि नेताओं में पूरे समय दहशत का माहौल बना रहा। विपक्षी नेता तक प्रशासन के सुर में सुर मिला कर ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा… गीत गाते रहे। तारीफों की चाशनी में डुबो कर बयान जारी किए गए और सत्ता पक्ष के नेता दुबककर रह गए। नतीजा यह हुआ कि चुनाव परिणाम भाजपा के पक्ष में आ गया।
दंतेवाड़ा में 4 आईएएस
दंतेवाड़ा जिले में फिलहाल 4 आईएएस की पोस्टिंग है। एक प्रमोटी व 3 डायरेक्ट रिक्रूटी आईएएस मिलकर इस बार लोकसभा चुनाव निपटाएंगे। दिलचस्प बात यह है कि हालिया विधानसभा चुनाव में आरओ यानि रिटर्निंग ऑफिसर की जिम्मेदारी राज्य प्रशासनिक सेवा अफसर ने निभाई थी और चुनाव स्मूथली निपट गया था। इस बार हालात बदले हुए होंगे, इसकी पूरी संभावना है।
नदिया के पार नहीं उतर पा रही फोर्स
इंद्रावती नदी पार स्थित माड़ इलाका फोर्स के लिए हमेशा ही चुनौती भरा साबित होता रहा है। छिंदनार और पाहुरनार घाट पर पुल बनने के बाद भी फोर्स उस तरफ बैठने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं हो सकी है। इसके पहले मनो चिकित्सक एसपी डॉ अभिषेक पल्लव ने इंद्रावती पार प्रस्तावित आधा दर्जन कैम्पों के नाम गिनवा कर अंदर वाले दादाओं की टेंशन बढ़ा दी थी, लेकिन एक भी कैम्प नहीं लगाया। कैम्प जिले के दूसरे छोर पर बिठा दिए गए। यह एक तरफ का सायको वार था, जिसमें नक्सलियों व मानवाधिकार संगठनों का ध्यान दूसरी तरफ उलझाकर रखा गया।
बड़ी देर भए नन्दलाला…
सरकार बनने के बाद सूबे के मुखिया ने अब तक दंतेवाड़ा में माई के दरबार में हाजिरी नहीं लगाई है। जिस परिवर्तन यात्रा की शुरुआत इसी दंतेवाड़ा से कर भाजपा सत्ता के हाथी के हौदे पर चढ़ सकी, वहाँ हाजिरी लगाने में देरी हो रही है। सनद रहे डॉ रमन के तीसरे कार्यकाल में भी ऐसा ही कुछ हुआ था।