दक्षिण बस्तर के परिदृश्य पर आधारित साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम “शब्द बाण” (भाग-13)
शैलेन्द्र ठाकुर / दंतेवाड़ा
सरकार बदलने के बाद भी लोगों का काम-काज ठप पड़ा है। मैदानी कर्मचारी से लेकर अफसर तक छुट्टी की खुमारी से नहीं उबर सके हैं। आचार संहिता लागू होने के बाद से अब तक काम-काज गति नहीं पकड़ पाया है। पहले आचार संहिता और चुनाव कार्य की दुहाई देकर आम जन को टाला जा रहा था, अब नई सरकार और नई नीति आने तक इंतजार करने की बात कहकर लोगों को लौटाया जा रहा है।
महतारी वंदन में जुड़ा विवाहित वाला क्राइटेरिया
महतारी वंदन योजना की चुनावी घोषणा हुई तो, महिलाओं में बड़ी उम्मीद जागी कि चलो अब पेंशन की तरह घर बैठे हजार रुपए महीने खाते में आ जाएंगे। बात-बात पर पतिदेव का बटुआ नहीं टटोलना पड़ेगा। दिलचस्प बात यह थी कि पहले हितग्राही महिलाओं के लिए क्राइटेरिया स्पष्ट नहीं था, जिससे यह माना जा रहा था कि हरेक वयस्क महिला की पॉकेटमनी में सालाना 12 हजार आएंगे, कांग्रेस ने एक कदम आगे बढ़कर 15 हजार रुपए सालाना देने की घोषणा कर दी थी। कांग्रेस की ट्रेन पटरी से उतर गई और सरकार भाजपा की बन गई। महिलाओं को संतोष करना पड़ा कि चलो 3 हजार का नुकसान सही, कम से कम सालाना 12 हजार तो खाते में आयेंगे। लेकिन सरकार बनने के बाद अब होर्डिंग्स और प्रचार सामग्रियों में महिला के आगे विवाहित शब्द जुड़ने से बड़ा झटका लगा है। फाइनेंस कंपनियों की तरह **नियम व शर्तें लागू * वाली बारीक अक्षरों की लाइन प्रकट होती दिख रही है।
नए देव का दुलार
दक्षिण बस्तर में सीएम कका के दुलारे अब सूबे के मुखिया नए देव से भी दुलार पाने की पूरी कोशिश में जुटे हैं। बताया जाता है कि शक्तिपीठ सौंदर्यीकरण कार्य का लोकार्पण नए सीएम के हाथों करवाने के नाम पर एक्सटेंशन पाने की जी तोड़ कोशिश जारी है। वैसे भी शक्तिपीठ के आधे-अधूरे कार्यों का लोकार्पण और काम के बीच में शिलान्यास-भूमिपूजन करना सीएम कका के लिए अशुभ साबित हुआ। गलत फीडबैक के चक्र में फंसकर कका ने राजधानी में बैठे-बैठे ही ऑनलाइन मोड में भरोसे का बटन दबा दिया था। अंततः कका सरकार की ट्रेन ही पूरी तरह पटरी से उतर गई। इस हश्र को देखते हुए नए सीएम शक्तिपीठ सौदर्यीकरण जैसे आस्था से जुड़े कार्य पर हाथ डालेंगे या नहीं, ये देखने वाली बात होगी।
फिर से एक्शन में ‘दादा’
कांग्रेस सरकार की विदाई और भाजपा सरकार की वापसी के साथ ही बस्तर में अंदर वाले ‘दादाओं’ ने फिर से धूम-धड़ाका शुरू कर दिया है। पहले भूपेश सरकार इस समस्या का खात्मा करने का दावा करती नहीं थकती थी, अब 5 साल बाद अचानक फिर से सक्रियता से कई सवाल खड़े हो गए हैं। सूत्रों की मानें तो ‘जीयो और जीने दो’ का जो फॉर्मूला पिछली सरकार ने अपनाया था, वही इस शांति का मूल मंत्र था। अब सरकार बदली तो सरकार और दादाओं के तेवर फिर सख्त हो गए हैं।
सरकार का स्लीप मोड
राज्य में भाजपा की नई सरकार बने करीब महीने भर होने को हैं, और सरकार अभी तक एक्शन में नहीं आई है। भूपेश सरकार के सिपहसालारों के भरोसे ही मिशन 2024 को हासिल करने तैयारी चल रही है। जिन अफसरों की लेग साइड में गेंद फेंकने वाली नेगेटिव बॉलिंग से कांग्रेस को हिट विकेट होकर पैवेलियन लौटना पड़ा था, उन्हीं के दम पर नई फील्डिंग सजाई जा रही है। भाजपा के बड़े नेताओं के कांग्रेस के समय के फंसे बिल-व्हाउचर बड़ी तेजी से क्लियर हो रहे हैं, जिससे सत्ता पक्ष में फील गुड वाली स्थिति है, और अफसरों को अभयदान दिलवाने में जुट गए हैं। लेकिन निष्ठावान जमीनी कार्यकर्ताओं में असंतोष बढ़ता जा है, जिसका असर आगामी लोकसभा चुनाव में दिख सकता है।
गरीबी दूर होने की उम्मीद
एक समय मलाईदार रहे बीईओ, बीआरसी, सीआरसी की पोस्ट पर कांग्रेस शासन में आर्थिक संकट की गहरी काली छाया पड़ गई। कई तो गरीबी रेखा में जीवन यापन करने का रोना रोते रहे, लेकिन अंत तक कुर्सी नहीं छोड़ी।
अब भाजपा सरकार बनते ही इन बीईओ, बीआरसी की उम्मीदें फिर से हरी-भरी हो गई है, लेकिन पद पर काबिज होने नए प्रतिद्वंद्वियों की बड़ी फ़ौज भी तैयार खड़ी है। अगर नए लोगों को मौका मिला तो इन बेचारों की 5 साल की त्याग-तपस्या का क्या होगा? लेकिन कांग्रेस शासनकाल में अफसरी सुख भोग चुके बीईओ, बीआरसी के बदले जाने की संभावना फिलहाल नहीं दिख रही है।
सुकमा के नियंत्रण से निजात कब?
नई सरकार बनते ही जीएडी ने पुरानी सरकार में प्रतिनियुक्ति पर रखे गए अफसरों को मूल विभाग में लौटाना शुरू कर दिया। अब नई सरकार में मंत्रियों की च्वाइस के आधार पर नए ओएसडी और पीए नियुक्त किए जाएंगे। लेकिन दंतेवाड़ा जिले को पड़ोसी जिला सुकमा से लाकर विभाग चलवाने वाले अफसरों से मुक्ति कब मिलेगी यह तय नहीं हुआ है। मवेशियों से लेकर इंसानों के इलाज वाले विभाग की जिम्मेदारी तक इसी फॉर्मूले से तय हुई थी। स्टाफ दंतेवाड़ा का, प्रभारी सुकमा का वाली नीति अब तक जारी है।
सीएम और पुल का गज़ब संयोग!
मुख्यमंत्रियों और पुल निर्माण को लेकर दंतेवाड़ा जिले में गज़ब का संयोग दिखता है। मसलन, बालूद-बालपेट के बीच जिस पुल के निर्माण की घोषणा व शिलान्यास मुख्यमंत्री रहते डॉ रमन सिंह ने किया था, उसकी नींव का एक पत्थर तक अपने 2 कार्यकाल में नहीं रख सके। इसके बजट की मंजूरी भूपेश सरकार ने दी और काम भी शुरू करवाया। अब लोकार्पण भाजपा सरकार करेगी। इसी तरह छिंदनार घाट पर पुल निर्माण का सर्वे व मंजूरी तक डॉ रमन सरकार की देन थी, लेकिन लोकार्पण कर सारा श्रेय भूपेश ले गए। तीसरा संयोग फरसपाल-समलूर के बीच प्रस्तावित पुल का है, जिसकी घोषणा, मंजूरी तक भूपेश सरकार के कार्यकाल में हुई, लेकिन अपने 5 साल में इसकी नींव तक नहीं खुदवा सके। अब देखना यह है कि यह बहुप्रतीक्षित पुल नई भाजपा बनवाकर लोकार्पण कर पाती है, या नहीं।