कंधा किसका, बंदूक किसकी? ( 🏹 शब्द बाण -12)

 

✒️– शैलेन्द्र ठाकुर / दंतेवाड़ा

दक्षिण बस्तर में यह आसानी से समझ में नहीं आता कि कौन किसके कंधे पर बंदूक रखकर किस पर गोली चला रहा है? काम निकल जाने के बाद फिर कंधे को ही खुद की सलामती की दुआ करनी पड़ती है। यह भी दिलचस्प बात है कि यहां नेता अफसरी करते और अफसर नेतागिरी करते दिखाई पड़ते हैं।

बस्तर काला पानी या चारागाह !!

अविभाजित मध्यप्रदेश के समय से बस्तर, खासकर दक्षिण बस्तर में पोस्टिंग को अंग्रेज जमाने के काला-पानी की सजा से कम नहीं माना जाता था। सरकार भी पनिशमेंट पोस्टिंग के तौर पर अफसरों को यहां भेजा करती थी। लेकिन जब से डीएमएफ, विशेष केंद्रीय मद जैसे बजट का प्रावधान होता गया, अफसरों ने इसका अंधाधुंध दोहन कर कालापानी को स्वर्ग में बदल लिया। । नक्सली समस्या के चलते सिर्फ पुलिस विभाग के लिए ही अब यह पनिशमेंट पोस्टिंग रह गई है। बाकी मल्टी टैलेंटेड अफसरों के लिए अब यह चारागाह में तब्दील होता जा रहा है। पहले लोग यहाँ तबादला होने पर निरस्त करवाने के लिए मोटी रकम खर्च करने को तैयार रहते थे, अब उल्टी स्थिति हो गई है। अब यहां पोस्टिंग करवाने और यहीं रुकने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। चुनाव में सरकार बदलने के बाद सुना है कुछ अफसर अब प्रधानमंत्री आवास योजना को ढाल बनाकर रूकने की तैयारी में हैं और इसके लिए संघम शरणम गच्छामि वाली नीति अपना रहे हैं। जो लोग पहले कांग्रेस कार्यकाल में कका के मुंशी बनकर भरपूर मलाई खा चुके, वो पाला बदलते दिखने लगे हैं। अब संघियों के उपग्रह बनकर परिक्रमा कर रहे हैं और उनके प्रति कुछ ज्यादा ही मैत्री भाव दर्शा रहे हैं।

वायरस की विदाई

स्वास्थ्य विभाग में गहरी मूसला जड़ें जमाए एक बाबू पर सख्त कार्रवाई से विभाग में हर्ष की लहर व्याप्त है। इसके पहले कई बार प्रशासन और खुद विभाग ने भी कोशिश की थी, लेकिन अंगद के पांव की तरह जमे इस बाबू को हटा नहीं सके थे। बहरहाल, विभाग में 2-3 और ऐसे प्रतिभावान लोग हैं, जिनसे निपटना प्रशासन और विभाग के बस का रोग नहीं है। कई आईएएस अफसर इनकी जांच करते थक चुके, लेकिन नतीजा सिफर ही रहा है।

क्या फिर बदलेगा मुर्गियों का रंग ?

वर्ष 2018 में सरकार बदलने के बाद दंतेवाड़ा जिले के कड़कनाथ मुर्गे अनाथ हो गए। ऊपर से अफसर बदलते ही मुर्गे-मुर्गियों का रंग भी आदमियों की तरह बदल गया। पहले महंगे काले कड़कनाथ जिन दड़बों में इठलाते थे, वहां सफेद रंग वाले सस्ते ब्रायलर पलने लगे। अब 2023 में फिर से भाजपा सरकार आई है, तो कड़कनाथ मुर्गे-मुर्गियों के साथ ही इस विभाग के अफसरों की उम्मीदें भी जाग गई हैं। वैसे भी पड़ोसी जिले से भेजे गए अफसरों ने पूरे सिस्टम और इस विभाग को पहले ही हैक कर रखा है। नए सिरे से एन्टी वायरस चलाने पर ही कड़कनाथ और किसान सनाथ हो सकेंगे।

कांग्रेसी नेता का घुटनासन

जिले के एक कद्दावर कांग्रेसी नेता ने अपनी मन्नत पूरी होने पर घुटनों पर चलकर माईजी के दर्शन किए, तो यह चर्चा का विषय बन गया। बताया गया कि ज्यादातर मन्नतें चुनावी थीं। पार्टी की सरकार भी निपट गई और यह सीट भी। फिर भी आधी मन्नतों के पूरी होने के बावजूद नेताजी अपने वचनों पर कायम रहे, यह बड़ी बात है। वरना एक ‘पूर्व’ हो गए मंत्री तो पार्टी की सरकार नहीं बनने पर मूंछें मुंडाने की शर्त से मुकर चुके हैं।

शिकायतों का दौर
चुनाव के दौरान मिले पार्टी फंड को दबाने की कोशिशें आम बात हैं। जिन तक पहुंचने के लिए रुपया रास्ते बदल-बदल कर आया था, उन वास्तविक ‘हकदारों’ तक पहुंच ही नहीं पाया। सरकारी योजनाओं की तरह रास्ते मे ही रकम चुनिंदा मनसबदारों ने दबा दी। पहले दौर के मैनेजमेंट में कांग्रेस से पिछड़ चुकी भाजपा में पार्टी के खुफिया तंत्र ने तो ऐसी शिकायतों को आलाकमान तक पहुंचाने में देर नहीं की। नतीजतन, मन मसोसकर कुछ रकम ढीली कर दी गई। इस सीट पर पूरे चुनाव के दौरान सक्रिय रही खुफिया टीम ने ऐसे अमरबेल टाइप नेताओं की फेहरिश्त मुख्यालय तक पहुंचा दी है। गनीमत है यह सीट फिर से पंजे की गिरफ्त में नहीं चली गई। अब जीत हो ही गई है, तो इस पर शायद ही मंथन हो।

टेंपल कमेटी का पुनर्गठन !

राज्य में सरकार बदल गई, तो निगम-मंडल के पदाधिकारियों के बदले जाने की शुरुआत हो गई है। इसी क्रम में अब मां दंतेश्वरी शक्तिपीठ की टेम्पल कमेटी भी जल्द ही नए सिरे से गठित होने की संभावनाएं बढ़ गई हैं। अब देखना यह है कि इस कमेटी में विशुद्ध रूप से मंदिर की गतिविधियों से जुड़े लोगों का मनोनयन होता है, या फिर राजनीतिक आधार पर पार्टीगत सदस्य बनाने की विवादास्पद परिपाटी को आगे बढ़ाया जाता है।

रेत पालिसी सिर्फ गरीबों के लिए

कका की सरकार ने रेत खदानें ग्राम पंचायतों से छीन कर एकाधिकार कायम किया था, उसके साइड इफ़ेक्ट ज्यादा दिखाई पड़ रहे हैं। न तो पर्याप्त वैध खदानें मंजूर की गई, न ही रेत की कालाबाजारी रोकी गई। कार्रवाई के नाम पर गरीब ट्रैक्टर वालों को ही अब भी निशाना बनाया जा रहा है। अब यह नई भाजपा सरकार रेत की सहज, सुलभता वाली पारदर्शी नीति अपनाती है, या फिर कका के नक्शे कदम पर चलकर लकीर खींचती है,  यह भविष्य के गर्भ में है।

 

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