🎯🏹 दक्षिण बस्तर के परिदृश्य पर आधारित साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम 🏹
✒️ –शैलेन्द्र ठाकुर / दंतेवाड़ा
काल सर्प दोष योग से मुक्ति कब??
जब जन्म कुंडली में राहु-केतु की युति होती है और इसकी छाया किसी पर पड़ती है, तो काल सर्प दोष माना जाता है। तब दोनों ग्रह मिलकर हितग्राही यानी जातक को खूब परेशान करते हैं। दंतेवाड़ा जिले पर तो काल सर्प दोष पहले ही लगा हुआ है। यहां ग्रहों की ऐसी वक्र दृष्टि पड़ी कि ताकतवर ‘मंगल’, इंद्र, मुकुंद तक पानी मांगते नजर आए। सबकी पेशी पर पेशी करवा दी गई। गनीमत है कि पहले शनि की दो-दो अढ़ैया किसी तरह बीत गई और भला हो जनता का, जिसने दो अढ़ैया के बढ़कर साढ़े साती होने से पहले ही सरकार बदल दिया। अब जनता काल सर्प दोष का निवारण होने का इंतजार कर रही है। वैसे भी काल सर्प दोष निवारण और राहु-केतु की विदाई के लिए भगवान विष्णु की शरण में जाने और मंत्र जाप की सलाह ज्योतिषी देते हैं और संयोग से सूबे के नए सीएम भी विष्णु देव ही बने हैं।
लाल बत्ती का शौक ऐसे भी !!
गाड़ियों में लाल बत्ती लगाने का शौक कोई नई बात नहीं है। किसी समय मंत्री से लेकर कलेक्टर-एसपी तक को लाल बत्ती वाली गाड़ियों में चलने का अधिकार मिला करता था। समय के साथ लाल बत्ती धारण करने के अधिकार में कटौती हुई और इसकी जगह नीली बत्ती लगाने की छूट मिली। चूंकि नीली बत्ती में वो ठशन नहीं दिखता, सो अफसरों ने कुछ खास अवसरों को छोड़कर बाकी समय नीली बत्ती का इस्तेमाल करना ही बंद कर दिया।
हां, इतना जरूर हुआ कि एक महाप्रतापी अफसर ने लाल बत्ती का उपयोग करने की हसरत पूरी करने दूसरा ही तरीका निकाल लिया। अब अपने चेम्बर के सामने लाल बत्ती जलाने लगे। ठीक ऑपरेशन थियेटर की तरह। सीसीटीवी कैमरे पर नजर गड़ाए अफसर जिस आगंतुक को परेशान करना हो, चाहे वो कितना ही रसूखदार क्यों न हो, उसके लिए नो एंटी वाली लाल बत्ती जलाकर रखने लगे। बेचारे अर्दली भी साहब की हुक्म बजाने के चक्कर मे रिसेप्शन पर बैठे वीवीआईपी का कोप भाजन बनते रहे। सत्ता पक्ष के अच्छे-अच्छे माननीय भी लाल बत्ती बुझने के लंबे इंतजार के बाद हाथ-पैर पटकते बाहर से लौट जाते। इस लाल बत्ती के चक्कर मे कई फसाद भी हुए। अब देखना यह है कि नई नवेली भाजपा सरकार दंतेवाड़ा से शुरू हुए इस कलुषित नवाचार को आगे बढ़ाती है, या नई स्वस्थ कार्य संस्कृति विकसित करती है।
रेलिंग पर फिर ठनी रार
विधायक बनते ही अटामी ने दंतेवाड़ा की विवादास्पद रेलिंग को बुलडोजर चलाकर हटाने का ऐलान कर दिया। सनद रहे कि यह वही रेलिंग है, जिसे बुलडोजर चलाकर तोड़ने का अल्टीमेटम जिला पंचायत अध्यक्ष तूलिका कर्मा ने दिया था। लेकिन प्रशासन ने साम-दाम-दंड-भेद वाली नीति अपनाकर तब की सत्ताधारी पार्टी की नेत्री तूलिका के इस चैलेंज को सस्ते में निपटा दिया। इसके बाद रेलिंग को न सिर्फ बस स्टैंड चौक तक, बल्कि उसके आगे मोड़कर रेस्ट हाउस तक पहुंचा कर ही दम लिया।
यह भी बड़ा संयोग है कि इस बार भी ठीक वैसा ही कुछ होने वाला है। पिछली बार बुलडोजर चलवाकर रेलिंग हटाने को लेकर चैलेंज सत्ताधारी पार्टी की नेत्री से ही मिला था, और रेलिंग के समर्थन में विपक्षी दल भाजपा के नेता आ गए थे। इस बार भी चैलेंज सत्ता धारी पार्टी के नए विधायक ने दिया है। संयोग से रेलिंग बलपूर्वक लगाने वाली प्रशासनिक टीम भी वही है।
अब देखना यह है कि भाजपाई विधायक अपने कहे पर कायम रहते हैं, या फिर विवादास्पद रेलिंग अपनी जगह बनी रहती है।
सोशल मीडिया से तौबा!!
चुनावी आचार संहिता का ख़ौफ़ सरकारी अफसर-कर्मियों पर कुछ ज्यादा ही दिखाई पड़ता है। कई अफसर-कर्मी तो व्हाट्सएप्प, फेसबुक, इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म से महीनों से दूरी बनाए हुए हैं, कुछ फूंक-फूंक कर कदम रखते हुए इनका इस्तेमाल कर रहे हैं, कि कहीं गलती से किसी पोस्ट पर लाइक, कमेंट या शेयर दर्ज न हो जाए। कई तो ऐसे भी हैं, जिन्होंने अपना सोशल मीडिया एकाउंट या तो डिलीट कर दिया, या फिर आचार संहिता हटने तक के लिए डीएक्टिवेट कर दिया था। अब आचार संहिता हटने के बाद भी पूरी तरह स्थिति ‘सामान्य’ होने के इंतजार में हैं।
मदिरा प्रेमियों में हर्ष की लहर!
सरकार बदलते ही जिले के अन्य हितग्राहियों की तरह मदिरा प्रेमियों में भी खुशी की लहर दौड़ गई है। उन्हें उम्मीद है कि अब प्रिंट रेट पर मदिरा मिलेगी। और पैसे भी सीधे राज्य की अर्थव्यवस्था को संभालने में चले जायेंगे। दरअसल,
कका की सरकार में असली और नकली दो टाइप के बार कोड स्कैन कर ग्राहकों और सरकार को चूना लगाने का आरोप ईडी ने मढ़ा था। प्रिंट रेट से ज्यादा खर्चने पड़ते थे, ऊपर से पसंद की ब्रांड भी नहीं मिलती थी।
हां, इतना जरूर है कि सरकार ने कोरोना काल जैसे विषम हालात में भी होम डिलीवरी की सुविधा देकर मदिरा प्रेमियों की खूब सेवा-सुश्रुषा की थी, इस पुण्य कार्य के नंबर जरूर कका के खाते में दर्ज हो गए, जिससे मुख्यमंत्री न सही, गिरते-पड़ते कम से कम विधायक चुन लिए गए।
ऑपेरशन लोटस का ख़ौफ़
चुनाव परिणाम आने से पहले ही कांग्रेसी खेमे में भाजपा के तथाकथित आपरेशन लोटस का इतना ज्यादा ख़ौफ़ दिखा कि गिनती पूरी होने से पहले ही सूबे के कुछ कांग्रेसी उम्मीदवार रायपुर की ओर दौड़ गए। पार्टी आलाकमान का सख्त निर्देश जो था। इनमें चर्चित शख्सियत बस्तर के सुदूर क्षेत्र के विजयी उम्मीदवार थे, जो निर्वाचन प्रमाणपत्र जारी होने से पहले केशकाल घाट पार कर चुके थे। यह बात अलग है कि परिणाम एक्ज़िट पोल के उलट आया, और बहुमत की दौड़ में कांग्रेस औंधे मुंह गिर चुकी थी। इसके बाद आपरेशन लोटस जैसी कोई स्थिति ही बाकी नहीं रह गई।
हितग्राहियों से छल!
कका की सरकार के अंतिम साल में दक्षिण बस्तर में मनमानी की पराकाष्ठा इतनी ज्यादा बढ़ गई कि नक्सल प्रभावित दूरस्थ क्षेत्र के हितग्राहियों से प्रशासन ने ही छल-कपट करने में कमी नहीं की। पहले काम शुरू करवाया, फिर गोपनीय टेंडर करवाया, पोल खुली तो पंचायत को एजेंसी बनवाने की कोशिश हुई। सरपंच खुद काम करने पर अड़ गए तो आधा-अधूरा काम बीच में छोड़कर प्रशासकीय स्वीकृति को ही निरस्त कर दिया गया। अब ग्रामीणों की जमीन पर मुर्गी व बकरी पालन शेड अधूरे पड़े हैं। सिर्फ दीवारें खड़ी रह गई हैं। ग्रामीणों को दिखाए गए मुंगेरीलाल के हसीन सपने नई सरकार में धरातल पर उतरेंगे, या नहीं, ये देखने वाली बात होगी।
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