साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम
–शैलेन्द्र ठाकुर
कका-बाबा फार्मूला
दंतेवाड़ा सीट चुनाव के पहले तक कका की प्राथमिकता से बाहर मानी जा रही थी। इसकी वजह बाबा के प्रति झुकाव भी थी। लेकिन जैसे-जैसे सर्वे रिपोर्ट में पूरे छत्तीसगढ़ में सीटें घटने की बातें सामने आने लगी, तो कका को इस सीट को भी अपनी गिनती में लाना पड़ गया। यही वजह है कि सीएम कका नामांकन दाखिला करवाने खुद यहां पहुंच गए, वरना 495 करोड़ के धुंआधार विकास कार्यों का लोकार्पण तक दंतेवाड़ा की बजाय रायपुर में बैठकर कर चुके थे।
शिक्षको की पदोन्नति और संशोधन का कैलकुलेशन
सरकार ने शिक्षकों की पदोन्नति में संशोधन के मामले पर जिस तरह से स्टैंड लिया, उससे शिक्षकों की स्थिति त्रिशंकु जैसी हो गई है। पोस्टिंग वाली जगह से एकतरफा रिलीव तो कर दिया गया, लेकिन दूसरी जगह ज्वाइनिंग ही नहीं ली गई।
अब गुरुजियों को महीनों से वेतन नहीं मिला और ऊपर से भूखे पेट चुनाव निपटाने की मजबूरी आ गई है। इसके पहले गुरुजियों की पोस्टिंग प्रमोशन के नाम पर डंके की चोट पर एक से दूसरे जिले में कर दी गई थी।
जिसे जितने अंदरूनी गांव के स्कूल में फेंका गया, उसे वापसी की कीमत उतनी ही ज्यादा चुकानी पड़ी थी। दंतेवाड़ा के गुरुजी सुकमा जिले के ताड़मेटला, एर्राबोर, सिंगाराम, जगरगुंडा जैसे नक्सल वारदातों वाले उन नामचीन जगहों पर फेंके गए, जिन जगहों का नाम टीवी और अखबारों में देखा करते थे।
इसके बाद तो ट्रांसफर-पोस्टिंग से जुड़े जेडी दफ्तर के कर्ता-धर्ताओं की बांछें खिल गई। इन जगहों पर होने वाले धमाकों की तीव्रता और वारदातों के हिसाब से वापसी की टिकट की कीमत फिक्स हुई थी। जिन्होंने अपनी गाढ़ी कमाई से खर्च कर वापसी करवा ली, उनकी हालत अब आसमान से गिरे खजूर पर अटके टाइप हो गई है।
मान लें कि हाथी भी उड़ता है…
चुनावी चकल्लस इतना बढ़ गया है कि हर आदमी वर्ल्ड कप से ज्यादा इलेक्शन स्पेशलिस्ट नज़र आने लगा है। हर किसी से ये कॉमन सवाल पूछे जा रहे हैं? – क्या माहौल है? कौन जीत रहा है? कौन किसका वोट काट रहा है? बागी कितना बवाल काटेंगे? वगैरह-वगैरह। अब सवालों की झड़ी और तर्क-कुतर्क से बचने समझदार लोग मध्यम मार्ग अपना रहे हैं। एक सज्जन ने समझाया कि टोह लेने वाले समर्थकों से उलझने से बेहतर है कि हाथी उड़ने वाला फार्मूला अपनाओ। अगर कोई कहे कि हाथी उड़ता है, तो तर्क मत करो। कहो कि हां। मैंने भी देखा है। कल ही मेरे घर कपड़ा सुखाने वाले तार पर बैठा था।
बागी या प्रोजेक्टेड?
एक नामी राजनीतिक पार्टी से जुड़े पदाधिकारी के निर्दलीय नामांकन दाखिले को लेकर चर्चा खूब हो रही है। कोई कहता है कि गुटबाजी के चलते विरोधियों ने जान-बूझकर यह दांव खेला है। तो कोई कहता है कि ईवीएम में पहले नंबर पर पड़ने वाले ग्रामीण वोटों के असर को कम करने की रणनीति का नतीजा है। बहरहाल, दंतेवाड़ा सीट पर सीपीआई और आम आदमी पार्टी की तगड़ी चुनौती से भाजपा और कांग्रेस दोनों का समीकरण गड़बड़ा गया है।
असंतोष और अनुशासन
दंतेवाड़ा सीट पर टिकट वितरण को लेकर भाजपा में काफी असंतोष दिखा। जिलाध्यक्ष को टिकट मिलने के बाद बाकी दावेदारों में काफी नाराजगी भी दिखी। ओजस्वी समर्थकों ने तो बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐसा कर दिया। इससे हड़बड़ाए पार्टी रणनीतिकारों ने डैमेज कंट्रोल का उपाय शुरू किया। इसके बाद किसी तरह पैचअप हो सका। खबर है कि पार्टी ने अनुशासन का हवाला देते भविष्य में कुछ अच्छा होने का दिलासा दिया है, तब जाकर बात बनी है।
टॉयलेट : एक अनसक्सेस स्टोरी
शारदीय नवरात्रि इस बार तमाम मुश्किलातों के बीच सम्पन्न हुई। इस बार सबसे ज्यादा दिक्कत महिला प्रसाधन को लेकर हुई। लाखों की संख्या में आए पदयात्रियों के लिए टॉयलेट-यूरिनल का पर्याप्त इंतजाम नहीं था। खुले में शौच से मुक्ति का अभियान चलाने वाले शासन के पास खुद की कोई तैयारी नहीं थी। पड़ोसी जिले में इफ़रात बायो टॉयलेट की उपलब्धता के बावजूद समन्वय नहीं बनाया जा सका। पदयात्री शौच के लिए झाड़ी तलाशते रह गए। यही हाल निःशुल्क सेवा देने वाले वालंटियर्स का था, जिन्हें भोजन-पानी के लिए तरसना पड़ा।