थानों में जब्त माल के स्टॉक पर सवाल (शब्द बाण-46)

थानों में जब्त माल के स्टॉक पर सवाल (शब्द बाण-46)

साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम “शब्द बाण” (भाग-46)

(1 सितंबर 2024)

शैलेन्द्र ठाकुर / दंतेवाड़ा (1 सितंबर 2024

थानों में गांजा के जब्त माल का स्टॉक इतना ज्यादा होता है कि जब चाहे उसे इधर-उधर किया जा सके। कोंटा थाना में पत्रकारों को फंसाए जाने के आरोप में इसी जब्त माल के स्टॉक के इस्तेमाल का संदेह जताया जा रहा है। सवाल यह है कि समय-समय पर पकड़े जाने वाले जब्त माल का आखिर पुलिस करती क्या है? विनष्टीकरण की प्रक्रिया में क्या सचमुच सारा माल नाप-तौल कर जलाया जाता है, या फिर सिर्फ कुछ पुड़िया जलाकर खानापूर्ति की जाती है। ताकि बचे हुए स्टॉक का इस्तेमाल समय पड़ने पर रस्सी को सांप बनाने में किया जा सके। ऐसे कई सवाल लोगों के जेहन में उभर रहे हैं।

—-  —-

अंधेरी रातों में..

दंतेवाड़ा नगर पालिका में एक पार्षद के अंधेरी रात में सुनसान सड़क पर जाम नाली में उतरकर सफाई करने का मामला सुर्खियों में है। ठीक महानायक अमिताभ बच्चन के शहंशाह फ़िल्म की तरह।
कई बार आगाह करने के बाद भी पालिका ने सफाई नहीं की, तो पार्षद को यह कदम उठाना पड़ा।
इसका वीडियो भी खूब वायरल हुआ। हालांकि भाजपाई पक्ष का पार्षद होने की वजह से इस उत्साही युवा नेता पर काफी दबाव भी बना। जिससे वीडियो खोज-खोज कर डिलीट करवाना पड़ गया। दरअसल, नगर पालिका से लेकर राज्य व केंद्र तक भाजपा ही सत्ता में है। ऐसे में अपनी ही पार्टी को कटघरे में खड़ा करने जैसा कदम पार्षद ने क्यों उठाया? यह बात पार्टी के कर्ता-धर्ताओं को नागवार गुजरी।

—-  —–

शून्य का हिसाब
दंतेवाड़ा जिले में स्थित बैलाडीला की लौह अयस्क खदानें कुबेर के खजाने से कम नहीं हैं, इस बात की जानकारी पहले इस्पात उद्योग से जुड़े लोगों तक ही सीमित थी। लेकिन जब से दंतेवाड़ा कलेक्टर ने इसके विभिन्न डिपॉजिट में से एक डिपॉजिट की खनिज रॉयल्टी बकाया को लेकर जुर्माना सहित 16 अरब से ज्यादा राशि रिकवरी का जो नोटिस थमाया है, उससे आम जनता को भी इसकी कीमत का अंदाजा हो गया है। यह इतनी बड़ी राशि है कि इसके पीछे कितने शून्य लगेंगे, लोग इसका ही ठीक-ठीक अनुमान नहीं लगा पा रहे हैं। ये और बात है कि प्रशासन और एनएमडीसी के बीच नोटिस को लेकर सवाल-जवाब का दौर जारी है। रिकवरी हो पाती है या नहीं, यह तो वक्त ही बताएगा। लेकिन इतना ज्यादा राजस्व देने वाली खदानों के ठीक नीचे बसे गांवों का पिछड़ापन देखकर ‘अमीर धरती’ के ‘गरीब लोग’ वाले विरोधाभास की स्थिति का पता आसानी से चलता है।

—–

सर्किट हाउस पर हाय तौबा!

दंतेवाड़ा जिले में सरकारी विश्रामगृह/सर्किट हाउस में ठहरने की जगह को लेकर हमेशा ही बवाल मचा रहता है। जिला मुख्यालय का इकलौता सर्किट हाउस अक्सर हाउसफुल चलता ही रहता है। इसमें रिजर्वेशन करवाने में एप्रोच वाले भारी पड़ते हैं। दूसरी तरफ वन और ट्राइबल विभाग के रेस्ट हाउस वैसे भी प्रशासन व आम जन की पहुंच से बाहर ही रहते हैं। 6 मंजिले ट्रांजिट हॉस्टल की दुर्दशा देखकर लोग इस तरफ रुख नहीं करते हैं। अब गीदम के पीडब्ल्यूडी रेस्ट हाउस में स्थानीय प्रशासन द्वारा ठहरने का किराया लागू किए जाने से नेताओं में खासी नाराजगी है। हालांकि, न्यूनतम तय शुल्क लेने का प्रावधान काफी पहले से है,लेकिन कोई भी रसूख वाला व्यक्ति यह मामूली रकम अपनी जेब से देने को खुद की तौहीन ही समझता है।

—–

तोते उड़ाने पर ब्रेक

वन विभाग के अफसरों ने अचानक ही लोगों के घरों में पाले गए तोते उड़ाने का फरमान जारी कर दिया था। इस फरमान को लेकर जन मानस में तीखी प्रतिक्रिया को देखते हुए विभाग के ही तोते उड़ने लगे। अंततः विभाग को बैकफुट पर जाना पड़ गया। विभाग ने आगामी आदेश व हायर अथॉरिटी से मार्गदर्शन मिलने तक के लिए इसे स्थगित कर दिया। इससे तोता प्रेमियों ने राहत की सांस ली है। अब देखना यह है कि पेड़ों से उतारे जाने वाले नवजात तोते को बेचने पर विभाग अंकुश लगा पाता है या नहीं। आखिर तोता पालने की शुरुआत तो यहीं से होती है।

—–

कब संवरेगा शक्तिपीठ मार्ग?

गीदम से दंतेवाड़ा के बीच 12 किमी की सड़क को साफ-सुथरा और सुंदर बनाने की पहल कब होगी, यह किसी को नहीं पता। दीगर जिलों से आने वाले दर्शनार्थियों को इसी सड़क से होकर गुजरना पड़ता है, लेकिन इस अव्यवस्थित मार्ग की वजह से उतनी अच्छी छवि नहीं बन पाती, जितना किसी धार्मिक स्थल की यात्रा से मन में अंकित होनी चाहिए। वृक्षारोपण महाभियान के नाम से दशक भर पहले रोपे गए पौधे खुद ही जंगली झाड़ियों से पट चुके हैं। ऊपर से एनएच का टैग लगने के बाद से सड़क पर कारली से आगे गीदम तक डिवाइडर लगाने की योजना भी अधर में लटक गई है। अब सब कुछ एनएच विभाग के रहमो-करम पर निर्भर है। गनीमत है कि हवाई यात्रा कर पहुंचने वाले वीवीआईपी दर्शनार्थियों के रास्ते मे यानी हेलीपैड वाले कारली से लेकर मुख्य नगर तक डिवाइडर पहले ही बन चुका था। बचे हुए हिस्से के सौंदर्यीकरण में दिलचस्पी नहीं लेने की एक बड़ी वजह यह भी है।

——

नया दौर, नए शौक
दक्षिण बस्तर में अब समय के साथ कुछ अजीबो-गरीब बदलाव देखने को मिल रहे हैं। खान-पान की आदतों पर भी इसका असर दिखने लगा है। जिला गठन के बाद से अब तक विकास कितना हुआ, यह तो नहीं पता। लेकिन अब इस तरफ ग्रामीण जन देशी मुर्गा बेचकर ब्रायलर खरीदकर खा रहे और अंग्रेजी शराब पी रहे हैं। दूसरी तरफ शहरी लोग देशी मुर्गा और महुए की देशी दारू की तरफ आकर्षित होने लगे हैं। यही वजह है कि चुनाव के वक्त वोटरों को ‘मैनेज’ करने के खर्चे भी बढ़ गए हैं। बदलाव की इस बयार में विकास का असली मुद्दा लुप्त हो गया है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

खुद की काबिलियत को पहचानना ही सफलता की पहली सीढ़ी – मीणा

नवोदय जीवन किसी तपस्या से कम नहीं नवोदय विद्यालय बारसूर के बच्चों ने दी शानदार प्रस्तुति विद्यालय का पैनल इंस्पेक्शन करने पहुंची टीम ड्रिल, सांस्कृतिक...