साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम शब्द बाण (भाग-44)
शैलेन्द्र ठाकुर @ दंतेवाड़ा
पुलिस रस्सी को भी सांप बना सकती है, यह बात सबने सुनी रही होगी। लेकिन कैसे बनाया जाता है, सुदूर दक्षिण बस्तर के एक थानेदार ने यह करके भी दिखा दिया। इस घटना के बाद से पत्रकारों में खासी दहशत है। ज्यादातर लोग बाइक की डिक्की निकालने की तैयारी में हैं। वहीं जिनके पास बड़ी डिक्की वाली सेडान वर्जन कार है, वो भी इसे बेचने का मन बना रहे हैं कि क्या पता, कब कौन क्या प्लांट करवा दे।
पवेलियन वापस हुए
दंतेवाड़ा में अपने नाम के अनुरूप धुंआधार बैटिंग करने के बाद सिविल सर्जन पैवेलियन लौटे। यह भी इत्तेफाक ही है कि जिला हॉस्पिटल में मचे बवाल और हड़ताल को शह देने, फिर विधायक का पुतला दहन जैसी घटनाओं के दिन ही ट्रांसफर लिस्ट में हॉस्पिटल के कप्तान का नाम आ गया। लोगों को लगा कि गाड़ियों की हवा खुलवाने वाले अफसर के मंसूबों की हवा निकल गई। लेकिन पोस्टिंग हुई भी तो वहीं, जहां डॉक्टर साहब खुद अपनी पोस्टिंग करवाने की कोशिश में लगे हुए थे। मनचाही जगह पोस्टिंग से विरोधी यह सोचकर सिर खुजा रहे कि यह पनिशमेंट है या फिर पुरस्कार? अब लोक सभा चुनाव की आचार संहिता में ही जमकर खरीदी-बिक्री और लाखों का भुगतान की जांच करवाने वाला ब्रह्मास्त्र छोड़ने की तैयारी विरोधी कर रहे हैं।
ओवरब्रिज का हसीन ख्वाब
दंतेवाड़ा में रेलवे फाटक के बार-बार बंद होने से परेशान लोगों की मुश्किल बढ़ गई है। दोहरी लाइन होने के बाद अब और भी ज्यादा देर तक फाटक बंद रहता है। बस्तर सांसद की पहल पर यहां ओवरब्रिज की घोषणा तो हुई है, पर काम कब शुरू होगा, ये कहना अभी मुश्किल है। लोग तो कहने लगे हैं कि शायद उनकी अगली पीढ़ी के लोग ही ओवरब्रिज देख पाएंगे।
भाजपा में अंदरूनी कलह
सत्ता में वापसी के बाद दंतेवाड़ा भाजपा में अंदरूनी कलह बढ़ गया है। दबी जुबान पार्टी के लोग ही कह रहे कि कैडरबेस पार्टी में केकड़ा राजनीति घुस गई है। होर्डिंग वार में पद और क्राइटेरिया पीछे छूटता जा रहा है। पार्टी न तो मीडिया को मैनेज कर पा रही है, न ही भीतरखाने से उभर रही आवाजों को साधने में कामयाब हुई है। वह भी ऐसे समय में, जब नगरीय निकाय और पंचायतों के चुनाव सिर पर हैं। ऐसे में किसी बड़े ब्रेक थ्रू का इंतजार कर रही कांग्रेस के लिए यह बड़ा मौका साबित हो सकता है। पिछले पंचायत चुनाव से सबक लेने को भी भाजपाई तैयार नहीं दिखते।
अफसरों का मोबाइल फोबिया
दंतेवाड़ा में सेकंड लाइन के अफसरों का मोबाइल कॉल से भयभीत रहना आम जन पर भारी पड़ रहा है। बड़े अफसर भले ही कॉल रिसीव कर लेते हों, लेकिन उसके नीचे बड़ी जिम्मेदारी संभाल रहे अफसर मोबाइल फोबिया यानी डर से ग्रस्त हैं। ताजा एक मामले में जिला मुख्यालय में 3 सरकारी आवासों के ऊपर पेड़ गिरने का हादसा हुआ, तो राजस्व व आपदा प्रबंधन के अफसरों ने कॉल ही रिसीव नहीं किया। परिवार रात भर फंसे रहे। अगले दिन राहत दल ने अपना काम शुरू किया। दूसरे मामले में राष्ट्रीय ध्वज से जुड़ी सूचना देने जब गीदम के अफसरों से संपर्क किया गया तो एक ने भी कॉल रिसीव नहीं किया। ऐसा ही रवैया चारों ब्लॉक में पदस्थ वन, प्रशासन और दीगर विभाग के अफसरों का है, जो आम जनता का कॉल ही रिसीव नहीं करते। भले ही जनता किसी आफत में फंसी हुई हो। लोग तो कहते हैं कि इसके पहले ‘महोदय’ के कार्यकाल में कम से कम व्हाट्सएप्प कॉल पर बात तो हो जाती थी।
पुराने अफसरों के भरोसे शिक्षा व्यवस्था
दंतेवाड़ा जिले में सरकार बदल गई, लेकिन शिक्षा विभाग में कोई ज्यादा बदलाव नहीं हुआ। क्रिकेट टेस्ट मैच वाले 5 स्पेशलिस्ट बॉलर और 5 बैट्समेन खिलाए जाने की रणनीति यहां अपनाई गई है। कुछेक संकुल समन्वयक और बीआरसी बदले गए। लेकिन ज्यादातर बीईओ अब भी भूपेश सरकार के कार्यकाल वाले ही हैं। रमन सरकार के कार्यकाल के एक अनुभवी बीआरसी को फिर से बुलाया गया है, ताकि ‘सिस्टम’ सही ढंग से चलता रहे। बाकी युवा खिलाड़ियों पर भरोसा जताया गया है। अब देखना यह है कि यह टीम एचआर कालीन स्वर्णयुग वाला प्रदर्शन दोहरा पाती है या नहीं।
प्रभारी प्राचार्य भी उधार में
दक्षिण बस्तर में उच्च शिक्षा विभाग का बुरा हाल है। 6 कॉलेज वाले इस जिले में एक भी पूर्ण कालिक प्राचार्य पदस्थ नहीं हैं। सबसे बड़े और अग्रणी कॉलेज के प्रभारी प्राचार्य को 3 कॉलेजों का प्रभार मिला हुआ है। सबसे मजेदार बात यह है कि 3 कॉलेज ऐसे हैं, जिनका प्रभार पड़ोसी जिला बीजापुर के एक कॉलेज के प्रभारी प्राचार्य के पास है। यानी प्रभारी प्राचार्य भी उधार में लेने की नौबत आ रही है।