( 11 अगस्त 2024)
साप्ताहिक व्यंग्य कॉलम शब्द बाण (भाग-43)
शैलेन्द्र ठाकुर @ दंतेवाड़ा
आपने हवाला कांड जैसे बड़े-बड़े कांड का नाम सुना होगा, लेकिन पिछड़े हुए दंतेवाड़ा में इन दिनों ‘हवा कांड’ की खूब चर्चा है। दरअसल, जिला हास्पिटल में गाड़ियों की हवा निकालने को लेकर बवाल मचा हुआ है। पार्किंग की सुविधा और चोरी से गाड़ियों को बचाने के इंतजाम पर तो प्रशासन का ध्यान नहीं है, लेकिन नो पार्किंग में भूल से भी गाड़ी खड़ी करने वालों पर सख्ती में कोई कोताही नहीं बरती जाती है। यहां पर मरीजों को वार्ड तक पहुंचाने के लिए कोई वार्ड ब्वाॅय नहीं मिलता है, लेकिन गाड़ियों के पहिए की हवा खोलने के लिए वार्ड ब्वॉय और स्टाफ जरूर पहुंच जाते हैं। यानी जिस सिस्टम की हवा पहले ही निकली हुई है, उसे दुरुस्त करने की जगह गाड़ियों की हवा निकालने में ज्यादा दिलचस्पी दिखाई जा रही है।
बलौदाबाजार कांड का असर दंतेवाड़ा तक
विश्व आदिवासी दिवस पर इस बार अलग ही नजारा दिखा। बलौदा बाजार आगजनी कांड से सबक लेते हुए प्रशासन ने इस बार पूरी तरह से इस दिवस के आयोजनों पर अपना नियंत्रण रखा। यहां तक कि जिला स्तरीय आयोजन में टैंट, साज-सज्जा से लेकर सांस्कृतिक प्रस्तुति में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। कलेक्टर, एसपी समेत पुलिस-प्रशासन के तमाम अफसर कार्यक्रम में पूरे समय मौजूद रहे। इससे वक्ता भी काफी संयमित ढंग से अपनी बात रखते दिखे। प्रशासन और समाज प्रमुखों के बीच दोस्ताना और सौहार्दपूर्ण वातावरण बना रहा।
जब पटवारी ही जेडी बनने लगे !
दक्षिण बस्तर में जमीन की खरीद-फरोख्त का धंधा इतना चल निकला है कि राजस्व व रजिस्ट्री शाखा से जुड़े कुछ लोग इसके पैसों से लाल होने लगे हैं। अलग-अलग केटेगरी के लोगों को तैयार कर उनके नाम से जमीन खरीदने और बाद में महंगे दामों पर बिकवाने का चलन बढ़ गया है। कुछेक कर्मचारियों ने अपने नाम से इतनी बार खरीदी-बिक्री करवाई है कि अगर बारीकी से जांच हो जाए, तो अनुपातहीन संपत्ति बनवाने के मामले में नया रिकार्ड कायम हो जाएगा। चर्चा तो यह भी आम है कि कुछ पटवारी ही ‘जेडी’ की भूमिका निभाने लगे हैं। यहां जेडी का मतलब ज्वाइंट डायरेक्टर जैसे बड़े प्रशासकीय पद से नहीं है। जमीन की खरीद-फरोख्त करने वालों को ही ‘जेेडी’ कहा जाता है।
समाधान का गज़ब फार्मूला!
बीजापुर जिला पिछले विधानसभा चुनाव के समय से राजनीतिक बयानबाजी और पोल खोलने की राजनीति की वजह से सुर्खियों में है। विधायक की आंखों में किरकिरी बन चुके नेता ने इस बार कलेक्टर काे ही चुनौती दे दी। नई सरकार ने इस कलह से निपटने का नया फार्मूला निकाला। चूंकि नेता कांग्रेस छोड़कर भाजपा ज्वाइन कर चुके हैं, लिहाजा स्व दलीय नेता के वचनों की लाज रखने के लिए कलेक्टर का नाम ट्रांसफर लिस्ट में जोड़ दिया। फिर सर्व समाज की मांग व एफआईआर के बाद नेताजी की भी गिरफ्तारी हो गई। कुल मिलाकर जिले में कुछ समय के लिए शांति की बहाली हो गई है।
विकास में बाधक बना रेल्वे!
बैलाडीला की खदानों से लौह अयस्क ढुलाई कर सालाना करोड़ों रूपए का राजस्व कमाने वाला रेल्वे दक्षिण बस्तर के गांवों के विकास पर ग्रहण लगाए बैठा है। रेल्वे ट्रैक के आर-पार गुजरने वाली कई ग्रामीण सड़कें दशकों से बंद पड़ी हैं। इन सड़कों पर रेल्वे न तो लेवल क्रासिंग देने को तैयार है, न ही ओवरब्रिज-अंडरब्रिज जैसी सुविधा। अब राज्य की विष्णुदेव सरकार नियद नेल्ला नार जैसी योजना लाकर अंदरूनी गांवों में विकास करने और नक्सलियों को पीछे धकेलने का दावा तो कर रही है, लेकिन रेल्वे जैसे सरकारी विभाग की मनमानी और विकास बाधित करने की जिद का कोई समाधान उसके पास नहीं है। पेड़ की जड़ को छोड़कर पत्तियों को सींचने की इस प्रवृत्ति से नियद नेल्ला नार जैसी योजना पूरी तरह सफल होगी, यह कहना मुश्किल है।
बैलाडीला रोड पर रोप-वे की जरूरत
दंतेवाड़ा से बैलाडीला यानि बचेली-किरंदुल तक जाने वाले स्टेट हाईवे-5 की ऐसी दुर्दशा है कि लोग इस तरफ की यात्रा करने के नाम से टेंशन में आ जाते हैं। पुराने जिस ठेकेदार का टेंडर निरस्त हुआ था, उसी ठेकेदार ने काम फिर से हासिल तो कर लिया, लेकिन काम उसी कछुआ गति से चल रहा है। लोग इस सड़क पर चलने की यंत्रणा भोगने को मजबूर हैं। इससे अच्छा तो यह होता कि दक्षिण बस्तर के हिल स्टेशन बैलाडीला से दंतेवाड़ा तक तार पर झूलने वाला रोप-वे या फिर उत्तराखंड की तरह रियायती दर पर हेलीकॉप्टर सर्विस ही मुहैया करवा दी जाती। ताकि लोग बगैर हिचकोले खाए आराम से यहां तक का सफर कर लेते।
बस से सागौन की तस्करी !
पड़ोसी जिला बीजापुर की तरफ से राजधानी जा रहे एक यात्री बस से सागौन के अवैध फर्नीचर की तस्करी पकड़े जाने की चर्चा इन दिनों आम है। यह मामला तब और भी पेचीदा हो गया, जब यह पता चला कि पुलिस के एक बड़े अधिकारी के बंगले से यह अवैध चिरान निकला था। अब पुलिस व फारेस्ट के बीच ताकत की असली जोर-आजमाईश चलेगी। देखना यह है कि इसमें भारी कौन पड़ता है? चर्चा यह भी है कि पकड़े गए फर्नीचर के दस्तावेज पेश करने का मौका फारेस्ट ने दिया है। यह रसूख का कमाल ही तो है, वरना कोई गरीब व्यक्ति लूना पर मकान की चौखट लेकर जाता मिलता है, तो उसकी मोपेड को जब्त कर सीधे राजसात कर दिया जाता है।
वैसे भी एंबुलेंस और पुलिस वाहन में अवैध फर्नीचर तस्करी का मामला कोई नया नहीं है। करीब डेढ़ दशक पहले एक अफसर की लाल बत्ती वाली गाड़ी में सागौन के फर्नीचर नियमित रूप से ढुलाई करने का एक मामला सामने आ चुका है।
एक फूल दो माली
एक ही बैंक खाते को दो अलग-अलग हमनाम खातेदारों को आबंटित करने का ‘नवाचार’ दंतेवाड़ा में हुआ है। हैरानी की बात यह है कि एक ही खाते में दो अलग-अलग खातेदारों द्वारा जमा और निकासी का क्रम 9 साल तक चलता रहा और किसी को भनक भी नहीं लगी। जब गलती का पता चला तो खाता बंद कर बैंक ने जमा राशि दोनों खातेदारों में बंटवा दी। बैंक की इस अक्षम्य चूक पर लोग तो मजाक-मजाक में यह भी कहने लगे हैं कि काश! किसी करोड़पति खातेदार के साथ उनका खाता भी ऐसे ही लिंक हो जाए।