श्री पद्धति से धान की खेती से होता है दोगुना अधिक उत्पादन
हरी खाद के उपयोग से होगा मिट्टी में सुधार
बस्तर अपडेट @ दंतेवाड़ा
दंतेवाड़ा जिले के किसानों को परंपरागत धान की खेती के स्थान पर ’’श्री पद्धति’’ से बोनी के लिए प्रेरित कर उत्पादन बढ़ाने का विशेष प्रयास किया जा रहा है। इस वर्ष कृषि विभाग द्वारा जिले भर में 600 हेक्टयर में श्री पद्धति से धान की बोनी का लक्ष्य रखा गया है। साथ ही 1200 हेक्टेयर रकबे में हरी खाद के उपयोग कर उत्पादकता को बढ़ाने के प्रयास भी किये जा रहे है।
कृषि विभाग के उप संचालक सूरज पंसारी ने बताया कि
जिले के किसानों को ’’श्री पद्धति’’ से धान बोनी के लिए प्रोत्साहन देने के क्रम में अब तक 540 हेक्टेयर क्षेत्र में ’’श्री पद्धति’’ से धान की बोनी की जा चुकी है। और ’’श्री पद्धति’’ से खेती करने पर लगभग दो से ढाई गुना अधिक उत्पादन होगा। इसके लिए किसानों को लगातार प्रेरित किया जा रहा है। इस पद्धति में गीदम, और दंतेवाड़ा क्षेत्र के किसान अधिक रूचि ले रहे हैं।
’’श्री पद्धति’’ से बोआई करने पर न केवल पानी की कम आवश्यकता पड़ती है साथ ही इस पद्धति से खेती करने में फसल में रोग भी लगने की संभावना भी कम रहती है। इसके अलावा ’’श्री पद्धति’’ के बोनी में उर्वरक और रासायनिक दवाओं, कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया जाता है। इसकी जगह ’’ग्रीन मन्योर’’ (हरी खाद) का उपयोग किया गया है। पिछले वर्ष तक जिले में महज 150 हेक्टेयर में ही ’’श्री पद्धति’’ से किसान धान की खेती करते थे। जबकि इस वर्ष श्री पद्धति से धान की खेती का रकबा बढ़ाया गया है।
ये भी फायदे
’’श्री पद्धति’’ से बोआई में कम बीज से अधिक उत्पादन होता है। इसके अलावा धान की खेती करने में लागत भी कम आती है। परंपरागत खेती में एक हेक्टेयर में जहां 50 से 60 किलो बीज की जरूरत पड़ती है, वहीं ’’श्री पद्धति’’ से धान की खेती में बीज जरूरत महज पांच से छह किलो की ही होती है। ऐसे में किसानों को कम बीज में अधिक उत्पादन मिलता है।